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सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् ।
ताम्री शलाका द्विमुखी मुखे कुरुबकाकृतिः॥ लिङ्गनाशं तथा विद्धयेत्कुर्यादंगुलिशस्त्रकम् ॥ १३ ॥ दोमुखोंवाली और मुखमें लाल कुरंटाकी कलीके समान आकृतिवाली तांबेकी शलाई करके लिंगनाश अर्थात् कफोत्थ पटलसंज्ञको बींधे और अंगुलीशस्त्रको बनावे ॥ १३ ॥ मुद्रिकानिर्गतमुखं फलेत्यर्द्धांगुलायतम् ॥
योगतो वृद्धिपत्रेण मण्डलाग्रेण वा समम् ॥ १४ ॥
परंतु मुद्रिकाकरके निकसाहुआ मुखवाला और फलमें आधा अंगुल के समान विस्तृत और पोगलाके वृद्धिपत्रशस्त्र अथवा मंडलाग्र शस्त्रके समान ॥ १४ ॥ तत्प्रदेशिन्यग्र पर्वप्रमाणार्पणमुद्रिकम् ॥
सूत्रबद्धं गलस्रोतोरोगच्छेदनभेदने ॥ १५ ॥
और वैद्यके अँगूठेके समीपकी अंगुली के अप्रपर्व के प्रमाण अर्पित मुद्रिकावाला और सूत्रकरके बँधाहुआ वह पूर्वोक्त शस्त्र गलके स्त्रोतोंके रोगको छेदन भेदन करनेमें युक्त किया जाता है ॥१५॥ ग्रहणे शुण्डिकार्मादेर्वडिशं सुनताननम् ॥
छेदेऽस्थनां करपत्रं तु खरधारं दशांगुलम् ॥ १६ ॥
झुंडिका अर्शआदि रोगोंके ग्रहण करनेमें योग्य और अंकुशकी तरह नतद्दुआ मुखवाला डिशशस्त्र बनाना और तीक्ष्ण धारवाला और लंबाई में दशअंगुल और हड्डियों के काटने में योग्य १६ विस्तारे यंगुलं सूक्ष्मदन्तं सुत्सरुबन्धनम् ॥
स्नायु सूत्रकचच्छेदे कर्त्तरी कर्त्तरीनिभा ॥ १७ ॥
और विस्तारमें दोअंगुलप्रमाण और सूक्ष्मदंतोवाला और सुंदर मुष्टिका बँधावा करपत्रशस्त्र बनाना और कैचीके समान रूपवाला कर्तरीशस्त्र बनता है वह नस सूत्रबाल इन्होंके काटने में योग्य है ॥ १७ ॥
वक्रर्जुधारं द्विमुखं नखशस्त्रं नवांगुलम् ॥
सूक्ष्मशल्योद्धृतिच्छेदभेदप्रच्छन्नलेखने ॥ १८ ॥
( २२३ )
टेढी और कोमलधारासंयुक्त दो मुखोंवाला और नव नव अंगुललंबा नखशस्त्र सूक्ष्मरूपशल्यके निकाशनेमें और नखोंके काटनेमें और भेदन लेखनकर्ममें युक्तकरना योग्य है ॥ १८ ॥ एकधारं चतुष्कोणं प्रबद्धाकृति चैकतः ॥ दन्तलेखनकं तेन शोधयेद्दन्तशर्कराम् ॥ १९ ॥
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एकप्रदेशमें एकधारवाला, चारकोणोंसे संयुक्त तथा एकदेशमें बँधीहुई आकृतिवाला दंतलेखनको शस्त्र बनाना, इसकरके दंतशर्कराको शोधै ॥ १९ ॥