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(२२४)
अष्टाङ्गहृदयेवृत्ता गूढदृढाः पाशे तिस्त्रः सूच्योऽत्र सीवने ॥
मांसलानां प्रदेशानां त्र्यस्त्रा व्यंगुलमायता ॥२०॥ गोलरूप और पाशमें गूढ तथा दृढ तीन सूची सीमनके अर्थ बनानी बहुतमांसवाले अंगोका सविनके अर्थ तीन कोणवाली और तीन अंगुलकरके विस्तृत ॥ २० ॥
अल्पमांसास्थिसन्धिस्थवणानां द्वथंगुलायता ॥
बीहिवका धनुर्वक्रा पक्कामाशयमर्मसु ॥ २१ ॥ Kई बनानी और अल्पमांसवाले तथा संधि और हड्डीमें आश्रित व्रणोंको सीवनेके अर्थ दो अंगुल विस्तारवाली सुई बनानी और व्रीहिके समान मुखवाली तथा धनुषके समान टेढी सुई पक्वाशय आमाशय मर्मको सीवनेके अर्थ बनानी ॥ २१ ॥
सा सार्द्धद्वयंगुला सर्ववृत्तास्ताश्चतुरंगुलाः॥
कू) वृत्तैकपीठस्थाः सप्ताष्टौ वा सुबन्धनाः ॥२२॥ परंतु यह सुई ढाई अंगुल प्रमाणसे बनानी और सब तर्फसे गोल और चार अंगुलोंके प्रमाणसे विस्तृत, गोलरूप एक पीठमें स्थित, सात अथवा आठ और सुंदर बंधनसे संयुक्त ॥ २२ ॥
संयोज्यो नीलिकाव्यङ्गकेशशातनकुट्टने ॥
अर्धांगुलैर्मुखैर्वृत्तैरष्टाभिः कण्टकैः खजः॥ २३ ॥ कूर्चसंज्ञक सुईयां बनानी, यह नीलिका अंग बालके काटने और कुट्टनमें प्रयुक्त करनी और आधाअंगुलप्रमाण मुखवाले और गोल आठ कंटकोंकरके खजशस्त्र बनता है ॥ २३ ॥
पाणिभ्यां मथ्यमानेन घाणात्तेन हरेदसक्॥
व्यधने कर्णपालीनां यूथिका मुकुलानना ॥ २४ ॥ हाथों करके मथ्यमान तिस खजकरके नासिकासे रक्त निकसता है और मुकुल अर्थात् फूलकी कलीके समान मुखवाला यूथिका शस्त्र बनाना यह कानकी पालियोंके वींधनेमें युक्त किया जाता है ॥ २४ ॥
आराद्धांगुलवृत्तास्या तत्प्रवेशा तथोलतः ॥
चतुरस्ता तया विध्येच्छोफं पक्कामसंशये ॥ २५ ॥ आधाअंगुलके समान गोलमुखवाला और आधा अंगुलप्रमाण प्रवेशवाला और ऊपरसे चोखूटय आरानाम शस्त्र बनाना, इसकरके पक्क और आमके संशयमें शोजेको वींधे ॥ २५ ॥
कर्णपालीञ्च बहुलां बहुलायाश्च शस्यते ॥ सूची त्रिभागसुषिरा व्यंगुला कर्णवेधनी ॥ २६ ॥
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