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(२२२)
अष्टाङ्गहृदयेवृद्धिपत्र शस्त्र छुराके आकारवाला होता है वह छेदन, भेदन, पाटन इन्होंमें युक्त करना योग्य है और कोमलरूप अग्रभागवाला वृद्धिपत्रशस्त्र उन्नतरूप शोजेमें युक्त करना और इससे विपरीत लक्षणवाला वृद्धिपत्रयंत्र गंभीररूप शोजेमें प्रयुक्त करना ॥ ६ ॥
नताग्रं पृष्ठतो दीर्घह्रस्ववत्रं यथाशयम् ॥
उत्पलाध्यर्धधाराख्ये छेदने भेदने तथा॥ ७॥ पृष्ठभागमें नतरूप अग्रभागसे संयुक्त और उत्पल तथा अध्यर्द्धधार नामोंवाले क्रमसे दीर्घमुख और ह्रस्वमुखवाले दो शस्त्र बनाने ये दोनों छेदन और भेदनमें युक्त करनेयोग्य हैं ॥ ७ ॥
सर्पास्यं घ्राणकर्णाशश्छेदनेऽद्धांगुलं फले ॥
गतेरन्वेषणे श्लक्ष्णा गण्डूपदमुखैषिणी॥८॥ नाक और कानके अर्शको छेदनेमें सर्पवक्रशस्त्रको प्रयुक्त करना यह शस्त्र फलमें आधा अंगुलके 'प्रमाण बनाना और व्रणके खोजनेमें गेंडोवाक मुखके समान मुखवाला एषणीयंत्र बनाना ॥ ८ ॥
भेदनार्थेऽपरा सूचीमुखा मूलनिविष्टखा ॥
वेतसं व्यधने स्राव्ये शरार्यास्यं त्रिकूर्चके ॥ ९॥ भेदनके अर्थ सूईके समान मुखवाली और मूलमें स्थित कियेहुये छिद्रसे संयुक्त ऐसा एषणीशस्त्र प्रयुक्त करना और वेतका यंत्रके आकार संयुक्त अर्थात् वेतसशस्त्र व्यधनमें प्रयुक्त करना और त्रिकूर्चकरूप त्राव्यमें शरार्यास्य अर्थात् शरारीपक्षीके मुखके समानमुखवाला शस्त्र प्रयुक्त करना॥९॥
कुशाटा वदने स्राव्ये व्यंगुलं स्यात्तयोः फलम् ॥
तद्वदन्तर्मुखं तस्य फलमध्यर्धमंगुलम् ॥ १०॥ __ और कुशाटाशस्त्र स्त्राव्यरूप मुखमें प्रयुक्त करना परन्तु शरा-स्य और कुशाटा शस्त्रका फल दो अंगल प्रमाणवाला होता है और कुशाटा शस्त्रके समान अंतर्मुख शस्त्र होता है इसका फल अर्द्धअंगुलके प्रमाण जानना ॥ १० ॥
अर्द्धचन्द्राननं चैतत्तथाऽध्य गुलं फले ॥
ब्रीहिवकं प्रयोज्यञ्च तच्छिरोदरयोwधे॥११॥ तथा कुशाटा शस्त्रकेही समान अर्द्धचंद्रानन शस्त्र बनता है और फलमें आधाअंगुलके समान ब्रीहिवक्र शस्त्र बनता है यह शिरा और पेटके व्यध अर्थात् वींधने प्रयुक्त करना योग्य है ॥११॥
पृथुः कुठारी गोदन्तसदृशार्लीगुलानना ॥
तयोर्ध्वदण्डया विद्धयेदुपर्यस्थनां स्थितां शिराम् ॥ १२ ॥ पृथु अर्थात् विस्तीर्णरूप संस्थान और दंडसे युक्त और गायके दंतके सदृश आधे अंगुल मुख चाले ऊर्ध्वदंडवाले कुठारीयंत्रकरके हड्डियोंके ऊपर स्थित हुई शिराको वींधै ॥ १२ ॥
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