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(२२०)
अष्टाङ्गहृदयेअष्टागुला निम्नमुखास्तिस्रः क्षारौषधक्रमे ।।
कनीनीमध्यमानामिनखमानसमैर्मुखैः॥३८॥ क्षारसंज्ञक औषधके क्रममें आठ अंगुलप्रमाणसे संयुक्त और डूबमुखबाली और कनिष्ठिका तथा मध्यमा तथा अनामिका इन्होंके नखोंके प्रमाणकरके सदृश मुखोंसे उपलक्षित ॥ ३८ ॥
स्वस्वमुक्तानि यन्त्राणि मेदशुद्धयञ्जनादिषु॥
अनुयन्त्राण्ययस्कान्तरज्जुवस्त्राश्ममुद्गराः॥ ३९ ॥ और लिंगकी शुद्धि और अंजन इन इन आदि कर्मों में यथायोग्य यंत्र कहेगये और कुशलवैद्य अनुयंत्रोंकोभी प्रकाशित करै अर्थात् अयस्कांत अर्थात् लोहाको आकर्षण करनेवाला मणिविशेष उंड, वस्त्र, पत्थर, मोगरी ॥ ३९ ॥
बनान्त्रजिह्वाबालाश्च शाखानखमुखद्विजाः॥ कालः पाकः करः पादो भयं हर्षश्च तक्रियाः॥
उपायवित्प्रविभजेदालोच्य निपुणं धिया ॥४०॥ बन, अन्त्र, जिला, बाल, शाखा, नख, मुख, द्विज, काल, पाक, कर, पाद, भय हर्ष ये जो उन्नीस अनुयंत्र, इन्होंकी क्रियाओंको अच्छीतरह बुद्धिके अनुसार देखकर उपायको जाननेवाला वैद्य विभाग करै अर्थात् निर्घातनआदि कर्मोमें विभागको प्रयुक्त करै ॥ ४० ॥ निर्घातनोन्मथनपूरणमार्गशुद्धिसंव्यूहनाहरणबन्धनपीडनानि ॥ आचूषणोन्नमननामनचालभङ्गव्यावर्तनजुकरणानि च यन्त्रकर्मी४१॥
निर्वातन, उन्मथन, पूरण, मार्गशुद्धि, संवाहन- आहरण, बंधन, पीडन, आचूषण उन्नमन, नामन, चालन, भंग, व्यावर्तन, ऋजुकरण ये सब यंत्रोंके कर्म हैं ॥ ४१॥ निवर्तते साध्ववगाहते च ग्राह्यं गृहीत्वोद्धरते च यस्मात् ॥ यन्त्रेष्वतः कङ्कमुखं प्रधानं स्थानेषु सर्वेष्वधिकारि यच्च ॥ ४२ ॥ अच्छीतरह निवर्तित होता है और अच्छीतरह प्रक्षालित किया जाता है और ग्रहण करनेके योग्यको ग्रहण करके उद्धार करताहै और सब स्थानोंमें अधिकारवाला है इसवास्ते सबप्रकारके यंत्रोंमें कंकमुखयंत्र प्रधान अर्थात् अतिश्रेष्ठ है ॥ ४२ ॥ इति बेरीनिवासिवैद्यपंडितरविदत्तशास्त्रिकृताऽष्टांगहृदयसंहिताभाषाटीकायां
सूत्रस्थाने पंचविंशोऽध्यायः ॥२५॥
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