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सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (२०३) तमाईयित्वापनयेत्तदन्तेऽभ्यङ्गमाचरेत् ॥
विवर्जयेदिवास्वप्नभाष्याग्न्यातपशुकक्रुधः॥१६॥ - इसवास्ते तिस लेपको गीलाकरके दूर करे और तिसके अंतमें अभ्यंगको आचरित करै और मुखपै लेप करनेवाला मनुष्य दिनकाशयन, अतिबोलना, अग्नि, घाम, शोक क्रोधको त्यागे॥१६॥
न योज्यः पानसेऽजीर्णे दत्तनस्ये हनुग्रहे ॥
अरोचके जागरिते स च हन्ति सुयोजितः ॥ १७ ॥ पीनस, अजीर्ण, नस्यको दिये पश्चात् हनुग्रह, अरोचक; जागना इन्होंमें मुखके आलेपको प्रयुक्त न करै और अच्छीतरह योजित किया मुखलेप ॥ १७ ॥
अकालपलितव्यङ्गवलीतिमिरनीलिकाः ॥
कोलमज्जावृषान्मूलं शावरं गौरसर्षपाः ॥१८॥ अकालमें सफेद बालोंके होजानेको और व्यंग, वली, तिमिर, नीलिकाको नाशता है और बरकी मज्जा, बाँसाकी जड, लोध, सफेद सरसोंका लेप ॥ १८ ॥
सिंहीमूलं तिलाः कृष्णा दारूत्वङ् निस्तुषा यवाः॥
दर्भमूलहिमोशीरशिरीषमिशितण्डुलाः ॥ १९॥ कटेहलीकी जड, काले तिल, दारुहलदीकी छाल तुषकरके रहित जव इन्होंका लेप और डाभकी जड, चंदन, खस बस, शिरस, सोंफ चावल इन्होंका लेप ॥ १९॥
कुमुदोत्पलकह्नारदूर्वामधुकचन्दनम् ॥
कालीयकतिलोशीरमांसीतगरपद्मकम् ॥ २०॥ कुमोदनी, कमल, श्वेतकमल, दूब, मुलहठी, चंदनका लेप और पीतचंदन, तिल, खस, जटामांसी, तगर, पद्माकका लेप ॥२०॥ __ तालीसगुन्द्रापुण्ड्राह्वयष्टीकाशनतागुरुं ॥
इत्यर्द्धाोंदिता लेपा हेमन्तादिषु षट् स्मृताः॥२१॥ तालीस, गुंद्रा, पौंडा, मुलहटी, कांश, तगर, अगरका लेप ऐसे ये आधे आधेश्लोकमें कहे छहों लेप क्रमसे हेमंत आदि ऋतुओंमें हित कहे हैं ॥ २१ ॥
मुखालेपनशीलानां दृढं भवति दर्शनम् ॥
वदनं चापरिम्लानं श्लक्ष्णं तामरसोपमम् ॥ २२ ॥ • मुखके लेपको अभ्यास करनेवाले मनुष्योंके नेत्र दृढ होजाते हैं और प्रफुल्लितकी तरह और कोमल और कमलके समान उपमावाला मुख होजाता है ॥ २२ ॥
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