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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०२) अष्टाङ्गहृदयेसुखोष्णोदकगण्डूषैर्जायते वक्त्रलाघवम् ॥ निवाते सातपे स्विन्नमृदितस्कन्धकन्धरः ॥१०॥ कछुक गरम किये पानीके गंडूषोंकरके मुखका हलकापन उपजताहै, और वातसे रहित और घामसे सहित स्थानमें स्विन और मृदित कंधा और प्रीवावाला मनुष्य ॥ १० ॥ गण्डूषमपिबन् किञ्चिदुन्नतास्यो विधारयेत् ॥ कफपूर्णास्यता यावत्स्स्रवद्घाणाक्षताथ वा ॥ असञ्चार्यो मुखे पूर्णे गण्डूषः कवलोऽन्यथा ॥॥ ११॥ गंडूपको नहीं पान करताहुआ और कुछेक उन्नतमुख मनुष्य गंडूपको धारै, और जबतक कफसे पूर्ण मुखका भाव होवे अथवा जबतक झिरताहुआ नासिका और नेत्रका भाव होवे और पार्रत हुये मुखमें जो संचरित नहीं होसके वह गंडूष अर्थात् कुल्ला कहाता है इससे विपरीत हो वह कवल कहाता है ॥ ११ ॥ मन्याशिरःकर्णमुखाक्षिरोगाः प्रसेककण्ठामयवक्त्रशोषाः ॥ हृल्लासतन्द्रारुचिपीनसाश्च साध्या विशेषात्कवलग्रहेण ॥ १२ ॥ . मन्यारोग, शिरोरोग, कर्णरोग, मुखरोग, नेत्ररोग, प्रसेक, कंठरोग, मुखशोष, हलास, तंद्रा, अरुचि, पीनस ये सब रोग विशेषकरके कवल अर्थात् प्रासको धारण करनेसे साध्य होते हैं।।१२॥ कल्को रसक्रिया चूर्णस्त्रिविधं प्रतिसारणम् ॥ युद्ध्यात्तत्कफरोगेषु गण्डूषविहितौषधैः ॥१३॥ कल्क, रसक्रिया, चूर्ण इन भेदोंकरके प्रतिसारण ३ प्रकारका है वह प्रतिसारण गंडूपमें कहेहुये औषधोंके संग कफज रोगोंमें प्रयुक्त किया जाता है प्रतिसारणका अर्थ ( मंजन ) है ॥१३॥ मुखालेपस्त्रिधा दोषविषहा वर्णकृच्च सः॥ उष्णो वातकफे शस्तः शेषेष्वत्यर्थशीतलः॥१४॥ दोषनाशक. विषनाशक, वर्णकारक इन भेदोंकरके मुखका आलेप तीनप्रकारका है और वह मुखका आलेप वातकफमें उष्णरूप किया हित है और पित्तमें तथा वायुके अतिशयमें अत्यंत शोतलरूप मुखका आलेप हित है ॥ १४ ॥ त्रिप्रमाणश्चतुर्भागत्रिभागार्धाडुलोन्नतिः॥ अशुष्कस्य स्थितिस्तस्य शुष्को दूषयतिच्छविम् ॥१५॥ और वह तीनप्रकारका आलेप चौथा भाग, तिसरा भाग आधा भाग ऐसे अंगुलोंकी उन्नतिसे क्रमकरके जानना उंगलीसे दांत और जिह्वामें मंजन टगावै और शुष्कपनेसे वर्जित आलेपकी स्थिति वांछित है क्योंकि शुष्कहुआ लेप मुखकी त्वचाको दूपितकरता है ॥ १५ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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