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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२००) ... अष्टाङ्गहृदयेवर्तिरगुष्ठवत्स्थूला यवमध्या यथा भवेत् ॥ छायाशुष्कां विगर्भा तां स्नेहाभ्यक्तां यथायथम् ॥ २० ॥ पीछे अंगुटेकीतरह स्थूल और मध्यभागकरके जवके समान बत्तीको छायामें सुखाके और तिसदर्भके मूलको निकास यथायोग्य तिस बत्तीको स्नेहसे आई करै ॥ २० ॥ धूमनेत्रापितां पातुमग्निप्लुष्टां प्रयोजयेत्॥ शरावसम्पुटच्छिद्रे नाडी न्यस्य दशाङ्गुलाम् ॥ अष्टाङ्गुलां वा वक्त्रण कासवान्धूममापिबेत् ॥२१॥ उसे अग्निसे प्रज्वलित कर, और धूएँकी नलीके अंगूठे प्रमाण छिद्रमें अर्पित कर बत्तीको . पान करनेके अर्थ प्रयुक्त करै और शकोराके संपुटयुग्मके छिद्रमें दशअंगुलप्रमाणवाली अथवा आठ अंगुल प्रमाणवाली नलीको स्थापितकर खांसीवाला मुखसे धूम पानकरै ।। २१ ॥ कासः श्वासः पीनसो विस्वरत्वं पूतिर्गन्धः पांडुता केशदोषः॥ कर्णास्याक्षित्रावकण्डुर्तिजाढ्यं तन्द्रा हिमा धूमपं न स्पृशन्ति॥२२॥ कास श्वास पीनस स्वरहीनता पूतिगन्ध पाण्डुता केशदोष कर्ण मुख नेत्रत्राव खुजली जडता तन्द्रा हिचकी धूमपान करनेवालेको नहीं होते ॥ २२ ॥ इति बेरीनिवासिवैद्यपण्डितरविदत्तशास्त्रिकृताष्टांगहृदयसंहिताभाषाटकिायां सूत्रस्थाने एकविंशोऽध्यायः ॥ २१ ॥ द्वाविंशतितमोऽध्यायः । अथातो गण्डूषादिविधिमध्याय व्याख्यास्यामः । इसके अनंतर गण्डूषादिविधिनामक अध्यायका व्याख्यान करेंगे। चतुष्प्रकारो गण्डूषः स्निग्धः शमनशोधनौ ॥ रोपणश्च त्रयस्तत्र त्रिषु योज्याश्चलादिषु ॥ १॥ गंडूष अर्थात् कुले स्निग्ध, शमन, शोधन, रोपण इन भेदों करके ४ प्रकारके हैं तिन्होंमें आदिके तीन क्रमसे वात, पित्त, कफ इन्होंमें प्रयुक्त करनेयोग्य हैं ॥ १ ॥ अन्त्यो व्रणनः स्निग्धोऽत्र स्वाद्वम्लपटुसाधितैः ॥ स्नेहैः संशमनस्तिक्तकषायमधुरौषधैः ॥२॥ . और अंतका रोपणसंज्ञक गंडूष व्रणको नाशता है और स्वादु, अम्ल, नमक द्रव्योंके साधित स्नेहोंकरके स्निग्धांडूप बनता है और तिक्त,कपाय,मधुर,औषधोंकरके संशमनगंडूष बनता है ॥२॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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