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सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् ।
त्रिश्चतुर्वा मृदौ तत्र द्रव्याण्यगुरुगुग्गुलुः॥ मुस्तस्थौणयशैलयन लदोशीरबालकम् ॥ १३ ॥
तिन धूमों में जो कोमल धूमा है तिसमें अगर, गूगल, नागरमोथा, गठोना, शिलाजित, जटा - मांसी, खस, नेत्रवाला, ॥ १३ ॥
वराङ्गकौन्ती मधुकबिल्वमज्जैलवालुकम् ॥
श्रीवेष्टकं सर्जरसो ध्यामकं मदनं प्लवम् ॥ १४ ॥
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त्रिफला, कूट, रेणुका, मुलहटी, वेलगिरीकी मज्जा, एलवा, श्रीवेष्टक, धूप. राल, रोहिषतृण, मैनफल, गोपालदमनी ॥ १४ ॥
शल्लकी कुङ्कुमं माषा यवाः कुन्दुरकं तिलाः ॥
स्नेहः फलानां साराणा मेदोमज्जावसाघृतम् ॥ १५॥
शल्लकी, केसर, उडद, जत्र, सालईवृक्ष, तिल, नालिकेर आदिका स्नेह और सैर आदि सारों को स्नेह और मेद, मज्जा वसा, घृत ये द्रव्य मिलाये जाते हैं ॥ १५ ॥
शमने शल्लकी लाक्षा पृथ्वीका कमलोत्पलम् ॥ न्यग्रोधोदुम्बरा श्वत्थलक्षरोभ्रत्वचः सिता ॥ १६ ॥
शमनरूप धूमेंमें शलकी, लाख, सफेदसांठी, कमल, कुमोदनी और वट; गूलर, पीपलवृक्ष, पिलपन, लोध इन्होंकी छाल, मिसरी ॥ १६ ॥
यष्टीमधुः सुवर्णत्वक पद्मकं रक्तयष्टिका ॥
गन्धाश्चाकुष्ठतगरास्तीक्ष्णे ज्योतिष्मती निशा ॥ १७ ॥
मुलहटी, कचनारकी छाल, पद्माक, मजीठ और कूट तथा अगरकर के वर्जित सत्र गंधद्रव्य ये सब मिलाये जाते हैं और तीक्ष्ण धूमेमें मालकांगुनी, हल्दी ॥ १७ ॥
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दशमूलमनोह्वालं लाक्षा श्वेता फलत्रयम् ॥
गन्धद्रव्याणि तीक्ष्णानि गणो मूर्धविरेचनः ॥ १८ ॥
दशमूल, मनशिल, हरताल, लाख, श्वेतकिन्ही, त्रिफला, तक्ष्णिरूप गंधद्रव्य ये सब द्रव्य मिलाये जाते हैं और शोधन आदिगण शिरको विरोचित करता है ।। १८॥
जले स्थितामहोरात्रमिषीकां द्वादशाङ्गुलाम् ॥ पिष्टैर्धूमौषधैरेवं पञ्चकृत्वः प्रलेपयेत् ॥ १९ ॥
दिन और रात्रिभर पानी में स्थित और बारहअंगुलप्रमाणसे संयुक्त ऐसे दर्भके मूलको धूमोक्त औषधाकरके पांचवार प्रलेपित करे ॥ १९ ॥