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सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (१८५) और सम्यक्योग, हीनयोग, अतियोग ये सब तिस अनुवासनके स्नेहको पानके समान होते हैं और जो कछुक कालतक स्थित होकर पछि विष्ठाकरके सहित ॥ ५३॥
सानुलोमानिलः स्नेहस्तत्सिद्धमनुवासनम् ॥
एकं त्रीन् वा बलासे तु स्नेहबस्तीन् प्रकल्पयेत् ॥ ५४॥ और अनुलोमरूप वायुसहित वह स्नेह निकसे तब सिद्धरूप अनुवासन जानना, और कफके विकारमें एक अथवा तीन स्नेहबस्तियोंको प्रकल्पित करै ॥ ५४॥
पञ्च वा सप्त वा पित्ते नवैकादश वानिले ॥
पुनस्ततोऽप्ययुग्मांस्तु पुनरास्थापनं ततः॥५५॥ पित्तके विकारमें पांच अथवा सात स्नेहबस्तियोंको कल्पित कर और वायुके विकारमें नव अथवा ग्यारह स्नेहबस्तियोंको कल्पित करे, पीछे फिर अयुग्म अर्थात् ताक स्नेह बस्तियोंको देवै पछि फिर आम्थापनबस्तिका देवै ॥ ५५ ॥ ।
कफपित्तानिलेष्वन्नं यूषक्षीररसैः क्रमात् ॥
वातनौषधनिःक्काथस्त्रिवृतान्सैन्धवैर्युतः॥ ५६ ॥ कफ, पित्त, वातके विकारमें क्रमसे यूष, दूध मांसके रसके संग अन्नका भोजन देवै, और वातनाशक औषधोंके क्वाथसे संयुक्त और निशोथ तथा सेंधानमकसे युक्त ॥ ५६ ॥
वस्तिरेकोऽनिले स्निग्धः स्वाद्वम्लोष्णरसान्वितः ॥
न्यग्रोधादिगणकाथौ पत्रकादिसितायुतौ ॥ ५७॥ स्निग्ध और स्वादु, अम्ल, गरम रसोंसे युक्त एक निरूहबस्ति वातके विकारमें हित है और न्यग्रोधादिगणके क्वाथसे संयुक्त और पत्रकादि गण तथा मिसरीकरके समन्वित ।। ५७ ॥
पित्ते स्वादुहिमो साज्यक्षीरेक्षुरसमाक्षिकौ ॥
आरग्वधादिनिःक्वाथवत्सकादियुतास्त्रयः ॥ ५८॥ स्वाद और शीतल और घृत, दूध, ईखका रस, शहदके सहित दो बस्ती पित्तके विकारमें हित है और आरग्वधादिगणकै अमलतास काथ और वत्सकादि गणके औषधोंसे संयुक्त ॥१८॥
रक्षाः सक्षौद्रगोमूत्रास्तीक्ष्णोष्णकटुकाः कफे॥
त्रयश्च सन्निपातेऽपि दोषान् नन्ति यतः क्रमात् ॥ ५९॥ और रूखी, शहद तथा गोमूत्रसे संयुक्त तीक्ष्ण, गरम और कटु तीन बस्तियां कफके विकारमें 'हित हैं और सन्निपातमेंभी तीन बस्तियां हित हैं क्योंकि क्रमसे तीनों बस्ती दोषोंको जीततीहैं।॥१९॥
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