________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (१६५) स्तंभ त्वचाका संकोच-नसोंका संकोच-कंप, हृङह, वाग्ग्रह हनुग्रह, इन रोगोंकरके और पैर, ओष्ट, त्वचा, हाथ इन्होंकी श्यामता करके अतिस्तंभित मनुष्य जानना ॥ २१ ॥
न स्वेदयेदतिस्थूलरूक्षदुर्बलमूच्छितान् ॥
स्तम्भनीयक्षतक्षीणक्षाममद्यविकारिणः ॥ २२॥ अतिस्थूल, अतिरूक्ष, दुर्बल, मूर्छित, स्तंभनीय, क्षतक्षीण, क्षाम, मदिराके विकारवाले मनुष्योंको स्वेदित न करै तथा ॥ २२ ॥
तिमिरोदरवीसर्पकुष्ठशोषाढ्यरोगिणः ॥
पीतदुग्धदाधिस्नेहमधून्कृतविरेचनान् ॥ २३ ॥ - तिमिररोगी, उदररोगी, विसर्परोगी, कुष्ठरोगी, शेषरोगी, वातरोगी और दूध, दही, स्नेह, शहद इन्होंको पियेहुये और विरेचनको लियेहुये ॥ २३ ॥
भ्रष्टदग्धगुदग्लानिक्रोधशोकभयान्वितान् ॥
क्षुत्तृष्णाकामलापाण्डुमेहिनः पित्तपीडितान् ॥ २४॥ भ्रष्ट और दग्ध हुई गुदावाला और ग्लानि, क्रोध, शोक, भयसे युक्त क्षुधा, तृषा, कामला पांडुरोग, प्रमेह रोगोंवाले और पित्तसे पीडित ॥ २४ ॥
गर्भिणी पुष्पितां सूतां मृदु चात्ययिके गदे ॥
श्वासकासप्रतिश्यायहिध्माध्मानविबन्धिषु॥२५॥ गर्भिणी, प्रसूता, कपडे आयेहुई स्त्रिये इन सबोंको स्वेदित न करै और जो इन पूर्वोक्तोंके स्वेदकर्मके विना नहीं दूर होनेवाले रोग होजावे तो कोमल पसीना दिवाना योग्य है और श्वास, खांसी, प्रतिश्याय, हिचकी, आध्मान विबंध इन रोगोंमें ॥ २५ ॥
स्वर भेदानिलव्याधिश्लेष्मामस्तम्भगौरवे॥ .
अङ्गमर्दकटीपार्श्वपृष्ठकुक्षिहनुग्रहे ॥ २६ ॥ और स्वरभेद, वातव्याधि, कफरोग, आमदोष, स्तंभरोग, शरीरका भारीपन, अंगमर्द, कटिग्रह, पार्श्वग्रह पृष्टग्रह, कुक्षिग्रह हनुग्रह इन रोगोंमें ॥ २६ ॥ . महत्त्वे मुष्कयोः खल्यामायामे वातकण्टके ॥
मूत्रकृच्छार्बुदग्रन्थिशुक्राघाताढ्यमारुते ॥२७॥ और अंडवृद्धि, खलीवात, आमवात, वातकंटक, मूत्रकृच्छ्र, अर्बुद, ग्रंथि, वीर्यघात, वातरक्त इन रोगोंमें ॥ २७ ॥
स्वेदं यथायथं कुर्यात्तदौषधविभागतः॥ स्वेदो हितस्त्वनाग्नेयो वाते मेदः कफावृते ॥२८॥
For Private and Personal Use Only