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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (१६३) झ्हों करके पसेव दिवाने चाहिये और सहजना, कालाबाला, अरंड, करंजुआ, रास्ना, आजबला, ॥ ७ ॥ शिरीषवासावंशार्कमालतीदीर्घवृन्ततः॥ पत्रभंगैर्वचाद्यैश्च मांसैश्चानूपवारिजैः॥८॥ शिरस, वांसा, बाँस आक, चमेली, पीलालोध इन वृक्षोंके पत्तोंके समूहकरके अथवा वचादि औषधों करके अथवा अनूपदेशके जीवोंका मांसकरके पसेव दिवाने चाहिये ॥ ८ ॥ दशमूलेन च पृथक् सहितैर्वा यथामलम् ॥ स्नेहवद्भिः सुराशुक्तवारिक्षीरादिसाधितैः ॥ ९॥ और स्नेहवाले और दशमूल औषधोंमें साधित मदिरा सत्त, जल, दूध, इत्यादिकोंसे साधितकर दोषके अनुसार पसीने दिवाने चाहिये ॥ ९॥ कुम्भीर्गलन्तीर्नाडी पूरयित्वा रुजार्दितम् ॥ वाससाच्छादितं गात्रं स्निग्धं सिञ्चेद्यथासुखम् ॥१०॥ कि जैसे खडिमां अगर बांसआदिकोंकी बनाईहुई नाडी अथवा थालीको पूर्वोक्त कहे हुए मदिराआदिकोंके जलसे पूर्णकरके पीछे रोगीपुरुषको वस्त्र उढा शरीरको स्निग्ध कर सुखके अनुसार सेककरके पसीने दिवाने चाहिये कभी गरम कभी थोड़े गरमसे सींचे जिसमें कष्ट नहो ॥ १०॥ तैरेव वा द्रवैः पूर्ण कुण्डं सर्वाङ्गगेऽनिले॥११॥ भथवा जिस रोगीके सर्वाङ्गमें वात रोग होगया हो तो इन ऊपर कहे द्रवोंसे कुण्डपूर्ण करे॥११॥ अवगाह्यातुरस्तिष्ठेदर्शःकृच्छादिरुक्षु च ॥ निवातेऽन्तर्बहिः स्निग्धो जीर्णान्नः स्वेदमाचरेत् ॥ १२॥ , पीछे तिस कुंडमें स्नान कर स्थितरहै यह स्वेद बवासीरआदि रोगोंमें हित है परन्तु भीतर और चाहिरसे स्निग्ध हुआ मनुष्य अन्नको जीर्ण होने पै स्वेदको आचारत करै ॥ १२ ॥ व्याधिव्याधितदेशर्तुशान्मध्यवरावरम् ॥ कफातॊ रूक्षणं रुक्षो रक्षस्निग्धं कफानिले॥१३॥ च्याधिव्याधित, देश, ऋतु इन्होंकी अपेक्षा करके मध्य, उत्तम, हीन ऐसी रीतिसे स्वेद कर्म कर और कफकरके पीडित मनुष्य रूक्ष स्वेदको आचारित करै और कफ करके संयुक्त वातमें किसी 'अंगमें रूक्ष और किसी अंगमें स्निग्ध ऐसा स्वेदकरना चाहिये ॥ १३ ॥ आमाशयगते वायौ कफे पक्वाशयाश्रिते ॥ रूक्षपूर्वं तथा स्नेहपूर्व स्थानानुरोधतः ॥ १४ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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