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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६२) अष्टाङ्गहृदयेनिकालनेको ऊष्म कहते हैं । रोगके स्थानपर औषधादिकी पिंडी बाँधकर पसीना निकालनेको उपनाह और पतले द्रव्यके योगसे पसीना निकालनेको द्रव कहते हैं ॥ १ ॥ उपनाहोवचाकिण्वशताहादेवदारुभिः॥ धान्यैः समस्तैर्गन्धैश्च रास्नरण्डजटामिषैः॥२॥ ___ वच, मदिराका अवशिष्ट द्रव्य, शतावरी, देवदार, सबप्रकारके अन्न, सबप्रकारके अगरआदि सब गंध, रास्ना, अरंडकी जड, मांस, इन्होंकरके ॥ २ ॥ उद्रिक्तलवणैः स्नेहचुक्रतक्रपयःप्लुतैः॥ केवले पवने श्लेष्मसंसृष्ठे सुरसादिभिः ॥ ३॥ अर्थात् लवणसे संयुक्त और स्नेह, तक्र, चुक्र, दूध इन्होंसे आप्लुत ऐसे कूट अगर रास्नाआदि द्रव्योंकरके उपनाह स्वेद होता है यह पूर्वोक्त उपनाह केवल वातरोगमें होता है और कफकरके संतुष्ट वातरोगमें सुरसादिगणके औषधोंकरके उपनाह स्वेद होता है ॥ ३ ॥ पित्तेन पद्मकायैस्तु साल्वणाख्यैः पुनः पुनः॥ स्निग्धोष्णवीयमदुभिश्चर्मपद्वैरपूतिभिः॥४॥ पित्तकरके संयुक्त वातरोगमें पद्मकादिगणके औषधोंकरके उपनाह स्वेदकर्म करै ये सब स्वेद साल्वणनामसे प्रसिद्ध हैं और स्निग्ध तथा उष्णवीयोंवाले और कोमल और दुर्गधसे वर्जित ऐसे चर्मके पट्टोंकरके अंगको बाँधे ॥ ४ ॥ अलाभे वातजित्पत्रकौशेयाविकशाटकैः ॥ रात्रौ बद्धं दिवा मुञ्चेन्मुश्चेद्रात्रौ दिवाकृतम् ॥५॥ इसके अलाभमें अरंड आदिके पत्ते, कौशेयवस्त्र, कंबल इन्होंकरके अंगको बांधै सो रात्रिमें बँधेहुयेको दिनमें खोले और दिनमें बँधेहुयेको रात्रिमें त्यागै ॥ ५ ॥ ऊष्मा तत्कारिकालोष्टकपालोपलपांसुभिः॥ पत्रभंगेन धान्येन करीषसिकतातुषैः ॥६॥ उत्कारिका अर्थात् अलसीआदिद्रव्योंकी लापसी, लोहा, खोपरी, पाषाणधूली और पत्तोंके समूह इन्होंकरके और धान्यकरके अथवा गोबरकी करसी बालु रेत धान्यका तुष इन्होंकरके पसीने दिवाने चाहिये ॥ ६॥ अनेकोपायसन्तप्तः प्रयोज्यो देशकालतः॥ शिग्रुवीरणकैरण्डकारञ्जसुरसार्जकात् ॥ ७॥ और देशकालके विचार, कारकै जहाँ पवन न आसकै ऐसा स्थान देखै और आहार पचनेके उपरान्त पसीना निकाले । अनेक उपायोंकरके तपायेहुये । For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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