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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४२) .. अष्टाङ्गहृदयेस्वप्नशय्यासुखाव्यंगस्नाननिर्वृतिहर्षणः ॥ मेहामदोषातिस्निग्धज्वरोरुस्तम्भकुष्ठिनः॥१०॥ और नींद-शय्याजनित सुख-अभ्यंग स्नान चित्तकी आकुलताका अभाव-आनंद करके मनुष्योंको बृंहित करै,और-मेहरोगी-आमदोषरोगी-अतिस्निग्ध-ज्वररोगी ऊरुस्तंभरोगी -कुष्ठी १० विसर्पविद्रधिप्लीहशिरःकण्ठाक्षिरोगिणः ॥ स्थूलांश्च लङ्घयेन्नित्यं शिशिरे त्वपरानपि ॥ ११ ॥ और विसर्प-विद्रधी-पीहा-शिरोरोग-कंठरोग-नेत्ररोगवाले रोगियोंको और स्थूल मनुष्यों के निरंतर लंघन करवावै, और शिशिरऋतुमें इनरोगियोंसे अन्य रोगियोंकोभी लंघन करत्रावै ॥ ११ ॥ तत्र संशोधनैः स्थौल्यबलपित्तकफाधिकान् ॥ . आमदोषज्वरच्छर्दिरतीसारहृदामयैः ॥ १२ ॥ और तिन लंघनके योगोंमें स्थूलपना--बल-पित्त-कफकी अधिकतावालोंको और आमदोषअर-छर्दि-अतिसार-हृद्रोग ।। १२ ।। विबन्धगौरवोद्गारहृल्लासादिभिरातुरान् ॥ . मध्यस्थौल्यादिकान्प्रायः पूर्वं पाचनदीपनैः॥ १३ ॥ विबंध-भारीपन-उद्गार-हल्लास--आदिरोगोंसे पीडित मनुष्योंको संशोधननामक लंघनों करके लंधित करवावे. और मध्यम स्थूलताआदि रोगोंवालोंको पहले दीपन और पाचनरुप लंबनोंकरके लंधित करवावै ॥ १३॥ एभिरेवामयैरान हीनस्थौल्यबलादिकान् ॥ क्षुत्तृष्णानिग्रहैदोस्त्वार्तान्मध्यवलैदृढान् ॥ १४ ॥ हीनरूप स्थूलता और बलआदिवालोंको क्षुधा और तृषाको निग्रहकरनेवाले लंघनोकरके लंधित करवावै और मध्यवलवाले दोषोंकरके पीडित और दृढम्प रोगियोंको वायु-घाम-व्यायामरूप-लंघनोंकरके लंबित करवावै ॥ १४ ॥ समीरणातपायासैः किमुंताल्पबलैनरान् ।। न बृहयेल्लङ्घनीयान्ह्यांस्तु मृदु लङ्घयेत् ॥१५॥ और अल्पबलवाले दोषोंकरके पीडित मनुष्योंकोभी लंबन करवावै, और लंघनके योग्य अर्थात् पूर्वोक्त प्रमेहआदि रोगियोंको बृहित नहीं करे, और बृंहण करने के योग्य रोगी समझे जावै तो कोमल लंघन करवावै ॥ १५ ॥ युक्त्या वा देशकालादिबलतस्तानुपाचरेत् ॥ हिते स्याबलं पुष्टिस्तत्साध्यामयसंक्षयः॥१६॥ . For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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