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सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (१४१) पृथ्वीतत्व और जलतत्त्वसे युक्त हो वह बृंहण कहाता है और अग्नि-वायु-आकाश-इन तत्वोंसे जो युक्त हो वह लंघन कहाता है, और स्नेहन-रूक्षण-स्वेदन-स्तंभन येभी कर्म बृंहण और लंघनरूपकरके दोदो प्रकारके हैं ॥ ३ ॥
भूतानां तदपि द्वैध्याद् द्वितयं नातिवर्त्तते ॥ - शोधनं शमनं चेति द्विधा तत्रापि लङ्घनम् ॥४॥ क्योंके पंचमहाभूतोंको दोदो प्रकारवाले होनेसे ये पूर्वोक्त कर्मी दोदो प्रकारोंके उल्लंधित नहीं करते हैं, और शोधन तथा शमनभी दोदो प्रकारका है तिन्होंमें लंघनभी दो प्रकारका है ॥ ४ ॥
यदीरयेबहिर्दोषान्पञ्चधा शोधनञ्च तत्॥
निरूहो वमनं कायशिरोरेकोऽस्रविस्रुतिः॥५॥ जो दोषोंको बाहिरको निकासै तिसको शोधन कहते हैं, और वह शोधन पांचप्रकारका है निरूहबस्ति १ वमन २ शरीरका विरेक ३ शिरोविरेक ४ रक्तका निकासना ५ ऐसे ॥ ५ ॥
न शोधयति यदोषान्समान्नोदीरयत्यपि ॥
समीकरोति विषमाञ्छमनं तच्च सप्तधा ॥६॥ जो दोषोंको शोधित नहीं करै, और समान दोषोंको न बढावै और विषमरूपदोषोंको समान करे तिसको शमन कहते हैं वह शमन ७ प्रकारका है ॥ ६ ॥
पाचनं दीपनं क्षुतृड्व्यायामातपमारुताः॥
बृंहणं शमनं त्वेव वायोः पित्तानिलस्य च ॥७॥ पाचन १ दीपन २ भूखका निग्रह ३ तृषाका निग्रह ४ व्यायाम ५ घाम ६ वात ७ यह. सातप्रकारका है और वायुका तथा पित्तकरके संयुक्त वायुको बृंहण द्रव्य शमन करता है ॥ ७ ॥
बृहयेद्वयाधिभैषज्यमद्यस्त्रीशोककर्शितान् ॥
भाराध्वोरःक्षतक्षीणरूक्षदुर्बलवातलान् ॥८॥ व्याधि-औषध-मदिरा-स्त्रीसंग-शोकसे कर्शित और-भार-मार्गगमन छातीका फटनाइन्होंकरके क्षीण-रूक्ष-दुर्बल-वातवाला ॥ ८ ॥
गर्भिणीसूतिकाबालवृद्धान् ग्रीष्मेऽपरानपि ॥
मांसक्षीरसितासर्पिर्मधुरस्निग्धवस्तिभिः॥९॥ गर्भिणी-सूतिका-बाल-वृद्धको बृंहित करै और ग्रीष्मऋतुमें इन्होंसे अन्यमनुष्योंकोभी बृंहित करे, और मांस-दूध-मिसरी-घृत-मधुर और स्निग्ध बस्ति करके ॥ ९॥
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