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सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् । कच्चा कैथफल-खजूर-कमलकंद-पद्माक-कमल-मालाकागनी-लोध-आदि यह कषाय गण हैं, और पुराने शालिचाबल ॥ ३३॥
मुद्गाद्गोधूमतः क्षौद्रात्सिताया जाङ्गलामिषात् ॥
प्रायोऽम्लं पित्तजननं दाडिमामलकाहते ॥३४॥ पुराने जव-मूंग-गेहूं-शहद-मिश्री-जांगलदेशका मांस, इन्होंके विना विशेष करके मधुर पदार्थ कफको करता है ॥ ३४ ॥
अपथ्यं लवणं प्रायश्चक्षुषोऽन्यत्र सैन्धवात् ॥ _ तिक्तं कटु च भूयिष्ठमवृष्यं वातकोपनम् ॥ ३५॥
और प्रायता करके अनार और आंमलाके विना अम्ल द्रव्य पित्तको उपजाता है और सेंधानमकके विना सब प्रकारका नमक प्रायता करके नेत्रोंको अपथ्य है; तिक्त और कटु रस प्रायताकरके अवृष्यहै और वातको कुपित करता है ॥ ३५॥
ऋतेमृतापटोलीभ्यां शुण्ठीकृष्णारसोनतः॥
कषायं प्रायशः शीतं स्तम्भनं चाभयामृते ॥ ३६॥ परंतु गिलोय और परवल सूंठ पंपल लहशन विना और कपाय द्रव्य प्रायकरके शीतलवार्यवाले और स्तंभन हैं परंतु हरडैके विना ॥ ३६॥
रसाः कटुम्ललवणा वीर्येणोष्णा यथोत्तरम् ॥
तिक्तः कषायो मधुरस्तद्वदेव च शीतलः॥३७॥ कटु अम्ल लवण ये रस वीर्यकरके उत्तरोत्तर गरम हैं, और तिक्त कषाय मधुर ये रस अर्थात् द्रव्य उत्तरोत्तर क्रमसे शीतल हैं ॥ ३७ ॥
तिक्तः कटुः कषायश्च रूक्षा बद्धमलास्तथा ॥
पटुम्लमधुराः स्निग्धाः सृष्टविण्मूत्रमारुताः ॥३०॥ तिक्त कटु कषाय रस रूखे हैं और मलको बांधते है, लवण अम्ल मधुर रस स्निग्ध हैं विष्टा और मूत्रको उपजाते है ॥ ३८ ॥
पटोः कषायस्तस्माच्च मधुरः परमं गुरुः॥
लघुरम्लः कटुस्तस्मात्तस्मादपि च तिक्तकः॥ ३९ ॥ और लवणसे कषाय रस अतिभारी हैं, और कषायसे मधुरद्रव्य परम भारी है और अम्ल रस हलका है, और अम्लसे कटु रस हलका है और कटुसे तिक्त रस हलका है ॥ ३९ ॥
संयोगाः सप्तपञ्चाशत्कल्पना तु त्रिषष्टिधा॥ रसानां यौगिकत्वेन यथास्थूलं विभज्यते ॥४०॥
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