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(१०२)
अष्टाङ्गहृदयेपार्थिवं गौरवस्थैर्यसङ्घातोपचयावहम् ॥
द्रवशीतगुरुस्निग्धमंदसान्द्ररसोल्बणम् ॥६॥ भारीपन-स्थिरपन-संघात-उपचयको करनेवाला पार्थिवद्रव्य है और द्रवरूपशीतल-भारीचिकना मंद-सांद्रगुणोंकी अधिकतासे संयुक्त ॥ ६ ॥ • आप्यं स्नेहनविस्पन्दक्लेदप्रह्लादबन्धकृत् ॥
रूक्षतीक्ष्णोष्णविशदसूक्ष्मरूपगुणोल्बणम् ॥७॥ स्नेहन–विस्पंद-क्लेद-आनंद-बंधको करनेवाले जलतत्त्वकी अधिकतावाले द्रव्य हैं, और रूख -तीक्ष्ण-गरम-सुंदर-सूक्ष्मरूप गुणकी अधिकतासे संयुक्त ॥ ७ ॥
आग्नेयं दाहभावर्णप्रकाशपचनात्मकम् ॥
वायव्यं रूक्षविशदं लघुस्पर्शगुणोल्बणम्॥ ८॥ दाह-कांति-वर्ण-प्रकाश-पाकवाले आग्नेय द्रव्य हैं, और रूक्ष विशद और हलके और स्पर्श गुणकी अधिकतासे संयुक्त ।। ८ ॥
रौक्ष्यलाघववैशद्यविचारग्लानिकारकम् ॥ - नाभसं सूक्ष्मविशदलघुशब्दगुणोल्बणम् ॥९॥ रूखापन-हलकापन-विशदपना-विचार-ग्लानिको करनेवाला वायव्य द्रव्य है, और सूक्ष्म-. विशद-हलका--शब्दगुणकी अधिकतासे संयुक्त ॥९॥
सौषिर्यलाघवकरं जगत्येवमनौषधम् ॥
न किञ्चिद्विद्यते द्रव्यं वशान्नानार्थयोगयोः॥ १०॥ और सौषिर्यको तथा हलकेपनको करनेवाले आकाशतत्त्वकी अधिकतावाले द्रव्य है, इस कारण जगत्में सब द्रव्य औषधरूप हैं, अर्थात् अनेक तरहके प्रयोजन और योग युक्तिसे अर्थात् रोग निवारणके अर्थ सब द्रव्य औषधरूप हैं ॥ १० ॥
द्रव्यमूर्ध्वगतं तत्र प्रायोऽग्निपवनोत्कटम् ॥
अधोगामि च भूयिष्ठं भूमितोयगुणाधिकम् ॥ ११॥ उसमें अग्नि और वायुतत्वकी अधिकतावाले द्रव्य विशेषकरके ऊपरको गमन करते पृथिवीतत्त्व और जलतत्वकी अधिकतावाले द्रव्य नीचेको गमन करतेहैं ॥ ११ ॥
इति द्रव्यं रसान्भेदैरुत्तरत्रोपदेक्ष्यते॥
वीर्यं पुनर्वदन्त्येके गुरुस्निग्धहिमं मृदु ॥ १२॥ ऐसे द्रव्योंका निर्णय समाप्त हुआ, इसके अनंतर उत्तर अध्यायमें भेदों करके रसोंको वर्णन -- करेंगे, कितनेक वैद्योंने भारी और चिकना-शीतल और कोमल ॥ १२ ॥
मान
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