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(१०१)
सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् । नवमोऽध्यायः।
अथातो द्रव्यादिविज्ञानीयमध्यायं व्याख्यास्यामः। इसके अनंतर द्रव्यादिविज्ञानीयनामक अध्यायको व्याख्यान करेंगे।
द्रव्यमेव रसादीनां श्रेष्ठं ते हि तदाश्रयाः॥
पञ्चभूतात्मकं तत्तु मामधिष्ठाय जायते ॥ १॥ रस वीर्य आदिकोंके मध्यमें द्रव्यही प्रधान है और वे रस व सब रसआदि द्रव्यके आश्रयवाले हैं और हरडै आदि स्थावर पदार्थ और बकराआदि जंगम पदार्थ ये सब पंचभूतोंकी आत्मावाले हैं परन्तु पृथिवीको आधार बनाकर उपजते हैं ॥ १ ॥
अम्बुयोन्यग्निपवननभसां समवायतः॥
तन्निवृत्तिर्विशेषश्च व्यपदेशस्तु भूयसा ॥२॥ अग्नि वायु आकाशके समवायसे द्रव्यकी निष्पत्ति है, और द्रव्योंका विशेष अर्थात् अनेक तरहका स्वभावपनाभी अग्नि वायु आकाशके समवायसेहै, और जिस द्रव्यमें जो तत्त्व अधिक है वह द्रव्य उसी तत्त्वके नामसे अधिकृत किया गया है ॥ २ ॥
तस्मान्नैकरसं द्रव्यं भूतसंघातसम्भवात् ॥
नैकदोषास्ततो रोगास्तत्र व्यक्तो रसः स्मृतः ॥ ३॥ ___ इस वास्ते तत्त्वोंके समूहके संभवसे एक रसवाला द्रव्य कोई नहीं है इसीकारणसे एक दोषवाले ज्वर आदि रोग नहीं हैं, और तिस द्रव्यमें जो स्फुटरूप लब्ध होता है वह रस कहाता है।॥३॥
अव्यक्तोऽनुरसः किश्चिदन्ते व्यक्तोऽपि चेष्यते ॥
गुर्वादयो गुणा द्रव्ये पृथिव्यादौ रसाश्रये ॥ ४ ॥ __ और जो स्फुटपनेसे रहित प्रकाशवाला है वह अनुरस अर्थात् अल्प रस कहाता है और कितनेक मुनियोंने हरडै आदि द्रव्यका जीभ करके अन्तमें जो कछु स्फुटहोता है वह अनुरस है और रसके आश्रयरूप पृथिवीआदि द्रव्योंमें गुरु अर्थात् भारीपन आदि गुण स्थित हैं ॥ ४ ॥
रसेषु व्यपदिश्यन्ते साहचर्योपचारतः॥
तत्र द्रव्यं गुरुस्थूलस्थिरगन्धगुणोल्बणम् ॥ ५॥ और जो तिन गुणोंका रसोंमें व्यपदेश किया जाता है वह उसकी संगतिके योगसे है, भारी -स्थूल-स्थिर और गंधगुणसे बढाहुआ॥५॥
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