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मूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (८५) विरुध्यते सह बिसैद्लकेन गुडेन वा ॥
विशेषात् पयसा मत्स्या मत्स्येष्वपि चिलीचिमः ॥ ३०॥ कमलकंद-मूली-गुड-इन सातोंके संग विरोधित है और अनपदेशके मांसोंमेंभी विशेषकरके मछली दुधके संग विरुद्ध है और सब तरहकी मछलियोंमेंभी चिलीचिम मछली दूधके संग अतिविरुद्ध है ॥ ३० ॥
विरुद्धमम्लं पयसा सह सर्वं फलं तथा ॥
तद्वत्कुलत्थवरककगुवल्लमकुष्ठकाः ॥३१॥ खट्टा द्रव्य और सब खट्टे फल दूधके संग विरुद्ध हैं और कुलथी-वरकसंज्ञक व्रीहि-कांगणी मटर-वलसंज्ञक शिवी अन्न ये सब दूधके संग विरुद्ध हैं ॥ ३१ ॥
भक्षयित्वा हरितकं मूलकादि पयस्त्यजेत् ॥
वाराहं श्वाविधा नाद्यान्ना पृषतकुकुटौ ॥३२॥ और हरितमूलीआदिको खाके ऊपर दूधको त्याग देवै और शूकरके मांसको सेहके मांसके संग नहीं खावै और पृषतसंज्ञक मृग तथा मुरगाके मांसको दहीके संग नहीं खावै ॥ ३२॥
आममांसानि पित्तेन माषसूपेन मूलकम् ॥
अविं कुसुम्भशाकेन बिसैः सह विरूढकम् ॥ ३३ ॥ कचे मांसोंको पित्ताके संग नहीं खावै,और मूलीको उडदकी दालके संग नहीं खावे,और मेंढाके मांसको कुसुंभाके शाकके संग नहीं खायै; और अंकुरित अन्नको कमलकंदके संग नहीं खावै॥३३॥
माषसूपगुडक्षीरदध्याज्यैाकुचं फलम् ॥
फलं कदल्यास्तक्रेण दन्ना तालफलेन वा ॥ ३४॥ उडदकी दाल-गुड-दूध-दही-चूत--इन्होंके संग बढहलके फलको नहीं खावै और तक्रदही-ताडफलके संग केलेकी फलीको नहीं खावै ॥ ३४ ॥
कणोषणाभ्यां मधुना काकमाची गुडेन वा ॥
सिद्धां वा मत्स्यपचने पचने नागरस्य वा ॥३५॥ पीपल-मिरच-शहद-गुडके संग मकोहको नहीं खावै, और जिस पात्रमें मछलियां पकाई जा तिसपात्रमें पकाई हुई-मकोहको नहीं खावै, और जिस पात्रमें सुंठ पकाई जावे तिस पात्रमें पकाईहुई मकोहको नहीं खावै ॥ ३५॥
सिद्धामन्यत्र वा पात्रे कामात्तामुषिता निशाम् ॥ मत्स्यनिस्तलनस्नेहसाधिताः पिप्पलीस्त्यजेत् ॥ ३६॥
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