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अष्टाङ्गहृदयेशूकअन्न शिंबीअन्न पकअन्न मांस शाक फल औषध इनवर्गोकरके नित्यप्रति उपयोगिक अन्न का लेशमात्र प्रकाशित किया हैं ।। १७० ॥
इति बेरीनिवासिवैद्यपंडितरविदत्तशाश्यनुवादिताप्टांगहृदयसंहिता
भाषाटीकायांसूत्रस्थाने षष्ठोऽध्यायः ॥ ६ ॥
सप्तमोऽध्यायः।
अथातोऽन्नरक्षाध्यायं व्याख्यास्यामः॥ इसके अनंतर अन्नरक्षानामक अध्याय व्याख्यान करेंगे ।। राजा राजगृहासन्ने प्राणाचार्यं निवेशयेत् ॥
सर्वदा स भवत्येवं सर्वत्र प्रतिजारविः॥१॥ राजालोक राजस्थानके समीपमें वैद्यको बसावे, और वह वैद्य सबकालमें सब जगह अर्थात अन्न पान शयन माल्य आदि कर्ममें सावधान रहै ॥ १ ॥
अन्नपानं विषाद्रक्षेविशेषण महीपतेः॥
योगक्षेमौ तदायत्ती धर्मायास्तन्निवन्धनाः॥२॥ कुशल वैद्य विशेष करके राजाके अन्नपान आदिको विषसे रक्षित करें, क्योंकि योग और क्षेम तथा धर्म अर्थ काम मोक्ष ये सव राजाके अधीन हैं ॥२॥
__ ओदनो विषवान् सान्द्रो यात्यविस्त्राव्यतामिव ॥
चिरेण पच्यते पक्को भवेत्पर्युषितोपमः ॥ ३ ॥ विषसे संयुक्त चांवल सांद्र अर्थात् विलेपीके आकार होता है,और अलग सिक्थवाला नहीं होता है,और चिरकालमें पकताहैऔर पक्क हुये पीछे पर्युषित अर्थात् बासीभातके समानरूपवाला होजाता है जैसे बासी उप्णता रहित निस्तब्ध होता है इस प्रकार यह चूल्हेपरसे उतारतेही हो जाताहै।।३॥
मयूरकण्ठतुल्योमा मोहमूर्छाप्रसेककृत् ॥
हीयते वर्णगन्धायैः विद्यते चन्द्रकाञ्चितः ॥४॥ पीछे मोरके कंटके समान गरमाईकी पंक्तियोंवाला होजाता है, और मोह मूर्छा प्रसेक कफका थूकनाको करता है वर्ण और गंध आदि करके हीन होजाता है, और तेलमें पानीकी बूंद पडे सदृश चंद्रकोंसे पूरण हो जाता है ॥ इति नेत्रपरीक्षा है ॥ ४ ॥ .
व्यञ्जनान्याशु शुष्यन्ति ध्यामकाथानि तत्र च ॥ हीनातिरिक्ता विकृता च्छाया दृश्येत नैव वा ॥ ५॥
१शियबीअन्न एक प्रकारका धान्य ।
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