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सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् ।
(८१) और विषके संयोगसे सब व्यंजन तत्काल सूखजाते हैं, और मलिन काथोंवाले हो जाते हैं, और व्यंजनवाले क्वाथोंमें हीन और अतिरिक्त और विकृत छाया दीखती है, अथवा किसी तरहकी छायाही नहीं दखिती है ॥ ५॥
फेनोर्ध्वराजीसीमन्ततन्तुबुद्धदसम्भवः॥
विच्छिन्नविरसा रागाः खाण्डवाः शाकमामिषम् ॥६॥ और विशेष करके लयण और सटे रसोंमें विषके संयोगस अंगोंकी ऊपरकी पंक्तियां-सीमंत तन्तु बुलबुलोंकी उत्पत्ति होजाती है और विषके संयोगसे सब राग किसी २ प्रदेशमें रक्तवर्णसे संयुक्त, और रसोंसे विगत होजाते हैं और विषके संयोगसे शाक और मांसस्थान स्थानमें त्रुटीसे संयुक्त और विरसबाले हो जाते हैं ॥ ६ ॥
नीला राजी रसे ताम्रा क्षीरे दधनि दृश्यते ॥
श्यावा पीताऽसिता तने वृते पानीयसन्निभा ॥७॥ विषकरके दूषित मांसरसमें नीली बत्तीके आकार पंक्ति दीखती हैं और विषकरके दूषित दूधमें तांबाके वर्णके समान पंक्ति दखिती हैं, और विषकरके दूषित दहीमें श्याव रंगकी पंक्ति दीखती हैं, और विषकरके दूषित तक्रमें पीली और सफेदपनेसे रहित पंक्ति दीखतीहै और विषकरके दूषित वृतमें पानीके समान पंक्ति दिखती है ॥ ७॥ ..
काली मद्याम्भसोः क्षौद्रे हरित्तैलेऽरुणोपमा ।
पाकः फलानामामानां पक्कानां परिकोथनम् ॥ ८॥ विषकरके दषित गदिरामें तथा पानी में काली पंक्ति दिखती है और विषकरके दूषित शहदमें हरी पक्ति दिखती है, और विपकरके दूषित तेलमें कछुक लालरंगवाली पंक्ति दिखती है और विषकरके दूषित कवे फलोंका पाक होजाता है, और विपकरके क्षित पक फलोंका कोथ होजाताहै ॥ ८॥
द्रव्याणामाशुष्काणां स्यातां म्लानिविवर्णते ॥
मृदूनां कठिनानां च भवेत् स्पर्शविपर्यायः॥९॥ विषकरके दूषित गीले पदार्थोंमें ग्लानि होती है, विषकरके दूषित सूखे द्रव्योंका वर्ण बदल जाता है और विषकरके दूषित कोमल और कठिन पदार्थों का स्पर्श बदल जाता है ॥९॥
माल्यस्य स्फुटिताग्रत्वं म्लानिर्गन्धान्तरोद्भवः ॥ ध्याममण्डलता वस्त्रे शदनं तन्तुपक्ष्मणाम् ॥१०॥
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