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सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् ।
मदपित्तविषास्त्रघ्नो मुञ्जतं वातपित्तजित् ॥ स्निग्धं शीतं गुरु स्वादु बृंहणं शुक्रकृत्परम् ॥ ८२॥ और मद- पित्त-विष - रक्त - इन्हों को नाशता है मुंजातक वात और पित्तको जीतता है चिकना
है शीतल है, भारी है स्वादु है धातु और वीर्य्यको अतिबढाता है ।। ८२ ॥
गुर्वी सरा तु पालक्या मदनी चाप्युपोदका ॥
पालक्यावत्स्मृतचंचः स तु संग्रहणात्मकः ॥ ८३ ॥
(६७)
पालकशाक भारी है, सर है, पोईशाक मदको नाशता है भारी है, सर है और पालकशाक के समान गुणोंवाला चंचुशाक स्तंभन है ॥ ८३ ॥
विदारी वातपित्तघ्नी मूत्रला स्वादुशीतला ॥
जीवनी बृंहणी कष्ट्या गुर्वी वृष्या रसायनम् ॥ ८४ ॥
विदारीकंद वात और पित्तको नाशता है और मूत्रको उपजाता है और स्वाह है शीतल है और बलको देता है धातुओं को बढाता है कंटमें हित है भारी है वीर्य्यमें हित है और रसायन है ॥ ८४ ॥
चक्षुष्या सर्वदोषनी जीवन्ती मधुरा हिमा ||
कुष्माण्डम्बकालिंगकर्कारुर्वारुतिण्डिशम् ॥ ८५ ॥
जीवंती डोडीका शाक नेत्रों में हित है और सब दोषोंको नाशती है मधुर और शीतल है और कोहला- तुंबी-कचरा- -दोनों काकडी-ककाकडी टरकाकडी- लालतुंबी ॥ ॥ ८५ ॥ तथा पुचीनाकचिर्भटं कफवातजित् ॥
भेदि विष्टम्भाभिप्यन्दि स्वादु पाकरसं गुरु ॥ ८६ ॥
और त्रपुस- खीरा चीनाक - ककडी चिर्भट लालतूंबी - सेंध ये सब कफ और वातको जीतते हैं, यह पकने पर गुण होते हैं, और भेदी हैं, विष्टंभी हैं, कफको करते हैं पाकमें और रसमें स्वादु हैं. भारी हैं चीनाक कांगनीका एक भेद है ॥ ८६ ॥
वल्ली फलानां प्रवरं कूष्माण्डं वातपित्तजित् ॥
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वस्तिशुद्धिकरं वृष्यं त्रपुसं त्वतिमूत्रलम् ॥ ८७ ॥
बेल के फलों में कोहला ( पेठा ) श्रेष्ठ है वात और पित्तको जीतता है बस्तिस्थानको शुद्ध करता हैं और टरकाकडी मूत्रको अति उपजाती है ॥ ८७॥
तुम्बं रूक्षतरं ग्राहि कालिंगोर्वारुचिर्भटम्
बालं पित्तहरं शीतं विद्यात् पक्कमतोऽन्यथा ॥ ८८ ॥