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(६८) , अष्टाङ्गहृदये
तुंबी अतिरूक्ष हैं स्तंभन है और कचरा काकडी चिर्भट अर्थात् लालतुंबी ये तीनों कच्चे रहें तौं, पित्तको हरते हैं और शीतल हैं और पक्कहुये ये तीनों पित्तको करते हैं और गरम हैं ॥८८॥
शीर्णवृन्तं तु सक्षारं पित्तलं कफवातजित् ॥
रोचनं दीपनं हृद्यमष्ठीलानाहनुल्लघु ॥ ८९॥ छोटा कचरा खारसे संयुक्त होता है, और पित्तक्तो उपजाता है, कफ और वातको जीतता है, रोचन है दीपन है सुंदर है अष्ठीलाको और अफराको हरता है, और हलका है ॥ ८९ ॥
मृणालबिसशालूककुमुदोत्पलकन्दकम् ॥
नन्दीमाषककेलूटशृंगाटककशेरुकम् ॥ ९०॥ मृणाल-कमलकंद-कमलकी जड--कुमोदिनीकंद-लालकमलकंद-तुंडेरिका-वास्तुलकेलूट अर्थात् हिस्मक संज्ञक गूलर भेद-सिंगाडा-कसेरू ।। ९० ॥
क्रौञ्चादनं कलोड्यं च रूक्षं ग्राहि हिमं गुरु॥
कलम्बानालिकामार्षकुटिञ्जरकुतुम्बकम् ॥ ९१ ॥ कौंचादन-कंमलबीज-ये सब रूखे हैं, ग्राही हैं शौतल हैं भारे हैं और कलंब-कालजशाकमाठाशाक पत्नशाक श्वेतबंड ॥ ९१ ॥
चिल्लीलवाकलोणीकाकुरूटकगवेधुकम् ॥
जीवन्तझुंइवेडगजयवशाकसुवर्चलम् ।। ९२ ॥ मूली अथवा बथुवा-कर्डशाक-चूका-कुरुड-वधुक तृणधान्यविपेष-जीवशाक-झुंझशाकपुवाडशाक-चाकवतशाक-सूर्यवेलशाक ॥ ९२ ।।
आलुकानि च सर्वाणि तथा सृप्यानि लक्ष्मणम् ॥
स्वादु रूक्षं सलवणं वातश्लेष्माकरं गुरु ॥९३॥ सब प्रकारके आलू और दाल-मुचुकंदशाक ये सब स्वादुहैं रूखे हैं सलोने हैं वातको और कफको करते हैं और भारे हैं ॥ ९३ ॥
शीतलं सृष्टविण्मूत्रं प्रायो विष्टभ्य जीर्यति॥ स्विन्नं निष्पीडितरसं स्नेहाढ्य नातिदोषलम् ॥ ९४ ॥ और शीतल है विष्टा और मूत्रको रचते है और विशेषताकरके विष्टंभित होकर जरते है और ये सब स्वेदित किये और निष्पीडित रसवाले और स्नेहसे संयुक्त ऐसे हुए अति दोषोंको नहीं करते हैं ॥ ९४ ॥
लघुपत्रा तु या चिल्ली सा वास्तुकसमा मता ॥ तर्कारीवरणं स्वादु सतिक्तं कफवातजित् ॥ ९५॥
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