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(६६)
अष्टाङ्गहृदयेमण्डूकपर्णी कर्कोटकारवेल्लकपर्पटाः ॥
नाडी कलायं गोजिह्वा वार्ताकं वनतिक्तकम् ॥ ७५॥ मंडूकपर्णी-ककोडा-करेला-पित्तपापडा--सुवर्चलाविशेष-गोभी-वार्ताकु अर्थात् कटेहली भेद-कुडा ।। ७५ ॥
करीरं कुलकं नन्दी कुचेला शकुलादनी ॥
कटिल्लं केम्बुकं शीतं सकोशातककर्कशम् ॥ ७६ ॥ करीर-काकतेंडू-नंदीवृक्ष-पाठा-कुटकी-लंबेपत्तोंवाली सांठी--बुक-घंटोलि-निशोत।७६।
तिक्तं पाके कटु ग्राहि वातलं कफपित्तजित् ।।
हृद्यं पटोलं कृमिनुत् स्वादुपाकं रुचिप्रदम् ॥ ७७॥ ये सब पाकमें तिक्त हैं कटु हैं स्तंभन है बातको जीतते हैं कफको और पित्तको हरते हैं तिन्होंमें परवल सुंदर है क्रिमिरोगको नाशता है पाकमें स्वादु है और रुचिको देताहै ॥ ७७ ॥
पित्तलं दीपन भेदि वातघ्नं वृहतीयम् ॥
वृषन्तु वमिकासन्नं रक्तपित्तहरं परम् ॥ ७८॥ दोनों कटेली पित्तको करती हैं दीपन हैं भेदन हैं वातको नाशती हैं वांसा छर्दि-खांसी-रक्तपित्तको करती है ।। ७८ ॥
कारवेल्लं सकटुकं दीपनं कफजित्परम् ॥
वाकिं कतिकोष्णं मधुरं कफवातजित् ॥ ७९ ॥ करेला कटु है दीपन है कफको अति नाशता है वार्ताकु अर्थात् बैंगन कटु है तिक्त है उष्ण है मधुर है कफ और वातको जीतता है ॥ ७९ ।।
सक्षारमग्निजननं हृद्यं रुच्यमपित्तलम् ॥
करीरमाध्मानकरं कषायस्वादुतिक्तकम् ॥ ८० ॥ ओर खारकरके सहित वार्ताकु (बैंगन ) अग्निको उपजाता है सुंदर है रुचिमें उत्तम है और पित्तको नहीं करता है करीर आध्मान ( अफारा ) को करता है कसैला है स्वादु है तिक्त है ।।
कोशातकावल्गुजको भेदनावग्निदीपनौ ॥
तण्डुलीयो हिमो रूक्षः स्वादुपाकरसो लघुः ॥ ८१ ॥ घंटोलि और बावची भेदन है और अग्निको दीपन करती है, चौलाई शाक शीतल है रूखा है पाकमें रसमें स्वादु है हलका है ॥ ८१ ।।
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