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सूत्रस्थानं भोपाटीकासमैतम् । (५३) सीधु वात और पित्तको करताहै; और स्नेहविकारोंको और कफके विकारोंको नाशताहै मेद शोजा उदररोग बवासीरको नाशताहै और दोनोंतरहके सीधुओंमें पक्क रसवाला सीधु श्रेष्ठ है ईखके पकाये रसमें जो मद्य बनायाजाताहै उसे सीधु कहतेहैं ॥ ७४ ॥
छेदी मध्वासवस्तीक्ष्णो मेहपीनसकासजित् ॥
रक्तपित्तकफोक्लोदि शुक्तं वातानुलोमनम् ॥ ७५॥ माधवी मदिरा छेदनी है तीक्ष्णहै और मेह-पीनस--खाँसीको जीतती है शुक्त रक्तपित्तको और कफको उत्क्लेदित कर है और वातका अनुलोम करैहै ॥ ७५ ॥
भृशोष्णतीक्ष्णरूक्षाम्लहृद्यं रुचिकरं सरम् ॥
दीपनं शिशिरस्पर्श पाण्डुकृमिनाशनम् ॥ ७६ ॥ अतिउष्णहै तीक्ष्णहै रूक्ष है खट्टा है, सुंदर है और रुचिको करता है सर है दीपन है और शीतलरूप स्पर्शसे संयुक्त है और पाण्डु दृष्टि-कृमिको-नाशताहै ।। ७६ ॥
गुडेक्षुमद्यमा-कशुक्तं लघु यथोत्तरम् ॥
कन्दमूलफलाद्यं च तद्वद्विद्यात्तदासुतम् ॥७७॥ गुडके शुक्तसे ईखका शुक्त हलका है और ईखके शुक्तसे मदिराका शुक्त हलकाहै और मदिरा के शुक्तसे मुनक्काओंका शुक्त हलका है, कंद-मूल-फलआदिका जो शुक्त है तिसकी तरह गुड शुक्त आदिकेभी शुक्त जानने; शुक्त अर्थात् सिरका ॥ ७७ ॥
शाण्डाकी चासतं चान्यत्कोलाम्लं रोचनं लघु ॥
धान्याम्लं भेदि तीक्ष्णोष्णं पित्तकृत्स्पर्शशीतलम् ॥ ७८॥ शांडाकी और विनाकहेभी आसुत कालकरके खट्टे होजातेहैं अर्थात् स्वयं नहीं, ये रोचनहैं, और हलके हैं कांजी भेदन करतीहैं तीक्ष्ण है गरम है पित्तको करती है और शीतलस्पर्शसे संयुक्त है. सरसोंके रसमें शालिचावलोंका चून डालकर जो बनाते हैं अथवा कंदमूल फल पत्तोंके द्रवमें राई डालकर जो कांजी बनातेहैं उसे शाण्डाकी कहते हैं । जो केवल कंदमूलादिकोंमें मसाला, राई आदि डालकर रहनदे उसे आसुत ( आचार ) कहते हैं ॥ ७८ ॥
श्रमलमहरं रुच्यं दीपनं बस्तिशूलनुत् ॥
शस्तमास्थापने हृद्यं लघु वातकफापहम् ॥७९॥ श्रम और ग्लानिको हरती है, रुचिमें हितहै, दीपन है बस्तिके शूलको नाशती है, आर आस्थापनकर्ममें प्रशस्तहै, सुंदर है हलको है वात और कफको नाशती है ॥ ७९ ॥
मूत्रं गोजाविमहिषीगजाश्वोष्ट्रखरोद्भवम् ॥ पित्तलं रूक्षतीष्णोष्णं लवणानुरसं कटु ॥ ८० ॥
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