________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
(५४)
अष्टाङ्गहृदये
गाय-बकरी-भैंस—हाथी-अश्व - ऊंट - गधेके मूत्र पित्तको देते हैं, गस्म हैं तीक्ष्ण हैं पश्चात् सलोना रससे संयुक्त हैं कटु हैं ॥ ८० ॥
कृमिशोफोदरानाहशूलपाण्डुकफानिलान् ॥ गुल्मारुचिविपश्वित्र कुष्ठाशसि जयेषु ॥ ८१ ॥
और कृमि - शोजा - उदररोग -- अफरा- शूल - पांडु - कफ - बात - गुल्म- अरुचि - विपश्वित्र कुष्ठबवासीर को हरते हैं, और हलके हैं ॥ ८१ ॥
तोयक्षीरेक्षतैलानां वगैर्मद्यस्य च क्रमात् ॥
इति द्रवैकदेशोऽयं यथास्थूलमुदाहृतः ॥ ८२ ॥
पानी - दूध - ईख - तेल - इन्हों के बग करके और मदिरा के वर्गकरके क्रमसे द्रवपदार्थों का एक देश स्थूल प्रकरणके अनुसार प्रकाशित किया ॥ ८२ ॥
इति वेरीनिवासिवैद्यपांडेतरविदत्तशाख्यनुवादिताऽष्टांगहृदयसंहिताभाषाटीकायां सूत्रस्थाने पंचमोऽध्यायः ॥ ५ ॥
षष्ठोऽध्यायः ।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-000/
अथातोऽन्नस्वरूपविज्ञानीयमध्यायं व्याख्यास्यामः ॥ इसके अनंतर अन्नस्वरूपविज्ञानयिनामक अध्यायको व्याख्यान करेंगे । रक्तो महान् सकलमस्तूर्णकः शकुनाहृतः ॥ सारामुखो दीर्घशूको रोधशूकः सुगन्धकः ॥ १ ॥
रक्तशाली महाशाली कलम तूर्णक शकुनाहृत सारामुख दीर्घशुक रोधक सुगंधक ॥१॥ मगधदेशमें, महातण्डुल कश्मीर में, शकुनाहृत- हंसराज उत्तरकुरु में सारामख - कृष्णशुक- दीर्घशुकशुक्लाकार राघ्रपुष्प रोधपुष्पके आकारवाला सुगंधक गंधशालिनामसें जालंधरादिमें विख्यात हैं ॥ १ ॥ पतंगास्तपनीयाश्च ये चान्ये शालयः शुभाः ॥
स्वादुपाकरसाः स्निग्धा वृष्या बद्धाल्पवर्चसः ॥ २ ॥ पतंग—तपनीय–इनआदि-अन्यभी शुभरूप शालि चावल पार्क में और रसमें स्वादु है और चिकने हैं वृष्य हैं बद्ध और अल्प विष्ठाको करते हैं ॥ २ ॥
कषायानुरसाः पथ्या लघवो मूत्रला हिमाः ॥ शूकजेषु वरस्तत्र रक्तस्तृष्णात्रिदोषहा ॥ ३ ॥
पश्चात् कसैले रसवाले हैं पथ्य हैं हलके हैं, मूत्रको उपजाते हैं, शीतल हैं और महाशालि कलम आदि चावलोंमें रक्तशालि श्रेष्ठ हैं, ये तृषा और त्रिदोषको हरते हैं ॥
३ ॥
For Private and Personal Use Only