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अष्टाङ्गहृदय
तद्गुणा वारुणी हृद्या लघुतीक्ष्णा निहन्ति च ॥ शूलकासव मि श्वासविबन्धाध्मानपीनसान् ॥ ६८ ॥
और ऐसेही गुणोंवाली वारुणी मदिरा है, यह सुंदर है हलकी और तीक्ष्णहै शूल खाँसी छर्दि श्वास विबंध आध्मान पनिसको नाशती है. आध्मान -( अफारा ) दूर करे है स्रोतों में लेपन करने से दोषों को दूर करती है ॥ ६८ ॥
नातितीत्रमा लध्वी पथ्या वैभीतकी सुरा || व्रणे पाण्डामये कुष्ठे न चात्यर्थं विरुध्यते ॥ ६९ ॥ बहेडेकी मदिरा अतितीक्ष्णमदवाली नहीं है, और हलकी है, पथ्य है व्रणमें पाण्डुरोगमें कुष्टमें अतिविरुद्ध नहीं हैं ॥ ६९॥
यथाद्रव्यगुणोऽरिष्टः सर्वमद्यगुणाधिकः ॥
ग्रहणीपाण्डुकुष्ठार्शः शोफशोषोदरज्वरान् ॥ ७० ॥
द्रव्यों के अनुसार गुणोंवाला और मदिरा से अधिक गुणोंवाला अरिष्ट है, अर्थात् जैसे द्रव्योंसे बनाया जाय वैसाही गुण रखता है, यह ग्रहणीदोष - पांडु कुष्ट-- बवासीर - शोजा- शोष - उदररोगज्वरको नाशता है जो पकी हुई औषधोंको जलसे अर्थात् काथ आदिसे मद्य बनता है उसे अरिष्ट कहते हैं ॥ ७० ॥
हन्ति गुल्मकृमिप्लीहान कषायः कटुवातलः ॥ मार्क लेखनं हृद्यं नात्युष्णं मधुरं सरम् ॥ ७१ ॥
गुल्म कृमि लहरोगको नाशता है. कसैला है कटु है और वातको करता है मुनक्का दाखों की मदिरा लेखन है सुंदर है अतिगरम नहीं है मधुर है सर है ॥ ७१ ॥
अल्पपित्तानिलं पाण्डुमेहारीः कृमिनाशनम् ॥
अस्मादल्पान्तरगुणं खार्जूरं वातलं गुरु ॥ ७२ ॥
अल्पवित्त और वातको करें है और पांडु मेह कृमि बवासीरको नाशती है और इससे अल्प गुणोंवाली खजूरकी मंदिरा है यह वातको करती है और भारी है ॥ ७२ ॥
शार्करः सुरभिः स्वादुर्हयो नातिमदो लघुः ॥ सृष्टमूत्रशकृद्वातो गौडस्तर्पणदीपनः ॥ ७३ ॥
खांडसंबंधी मदिरा सुगंधित है स्वादुहै सुंदर है अतिमदवाली नहीं है, हलकी है गुडसंबंधी मदिरा मूत्र विष्ठा वातको रचती है तर्पण और दीपन है ॥ ७३ ॥
वातपित्तकरः सीधुः स्नेहश्लेष्मविकारहा ॥ मेदःशोफोदरार्शोघ्नस्तत्र पक्करसो वरः ॥ ७४ ॥
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