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उत्तरस्थानं भाषार्टीकासमेतम्। (१०२५) रसर्पिषा ॥९९॥ पिप्पलीना सहस्रस्य प्रयोगोऽयं रसायनम् ॥ पिष्टास्ता बलिभिः पेयाः सृतामध्यबलैनरैः ॥ १००॥ तद्वच्च . छागदुग्धेन द्वे सहले प्रयोजयेत् ॥
और क्रमवृद्धिसे दशदिनोंतक दश पीपलोंको दिन दिनके प्रति ॥९८ ॥ दूधके संग बढावे, और तैसेही फिर घटावै, और जीर्ण औषध होजावे तब दूध और घृतके संग शांठी चावलोंको खावै ॥ ९९ ॥ १००० पीपलोंका यह प्रयोग रसायनहै और बलवालोंको पीसकर पीपली पीनी योग्यहै, और मध्यम बलवाले मनुष्यको पकाई हुई पीपली पीनी योग्यहै ॥ १०० ॥ तैसेही बकरीके दूधसे २००० पीपलोंको प्रयुक्तकरै ।।
एभिः प्रयोगैः पिप्पल्यः कासश्वासगलग्रहान् ॥ १०१॥ यक्ष्मामेहग्रहण्यर्शः पाण्डुत्वविषमज्वरान् ॥
नंति शोफ वमिं हिमां प्लीहानं वातशोणितम् ॥ १०२ ॥ इन प्रयोगों से प्रयुक्तकरी पीपली खांसी श्वास गलग्रह ॥ १०१ ॥ राजयक्ष्मा प्रमेह ग्रहणीरोग बवासीर पांडुपन विषमज्वर शोजा छाई हिचकी प्लीहरोग वातरक्तको नाशतीहै ॥ १०२॥ बिल्वार्थमात्रेण च पिप्पलीनां पात्रं प्रलिम्पदयसो निशायाम् ॥ प्रातः पिवत्तत्सलिलाञ्जलिभ्यां वर्ष यथेष्टाशनपानचेष्टः॥१०३ ॥ दो तोले पीपलियोंसे रात्रिमें लोहेके पात्रको लेपितकर पीछे तिसे ३२ तोले पानीके संग पीवै एकवर्षतक और इच्छाके अनुसार भोजन पान चेष्टाको करै ॥ १०३ ॥
शुण्ठीविडङ्गत्रिफलागुडूचीयष्टीहरिद्रातिवलाबलाश्च ॥ मुस्ता सुराता गुरुचित्रकाश्च सौगन्धिकं पङ्कजमुत्पलानि॥४॥धवाश्वकर्णासनबालपत्रसारास्तथा पिप्पलिवत्प्रयोज्याः ॥ लोहोप लिप्ताः पृथवेग जीवेत्समाः शतं व्याधिजराविमुक्तः ॥५॥
झूट बायविडंग त्रिला गिलोय मुलहटी हलदी गंगेरन खरेहटी नागरमोथा देवदार अग सौगंधिक कमल साधारण कमल ॥ १०४ ॥ धवके फूल रालवृक्ष आसना नेत्रवाला तेजपात अनारको लोहेपै लेपितकर पृथक २ पीपलकी तरह प्रयुक्तकरे इससे रोग और बुढापेसे विमुक्तहुआ मनुष्य १०० वर्षांतक जीवताहै ॥ १०५ ॥
क्षीराञ्जलिभ्यां च रसायनानि युक्तान्यमून्यायसलेपनानि ॥ कुर्वन्ति पूर्वोक्तगुणप्रकर्षमायुःप्रकर्ष द्विगुणं ततश्च ॥ १०६ ॥ लोहेपै लेपितकिये ये पूर्वोक्त रसायन ३२ तोले दूधसे पूर्वोक्त गुणोंके अतिशयको और आयुश्रेष्ठताके दुगुनेपनको करतेहैं ।। १०६ ।।
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