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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरस्थानं भाषार्टीकासमेतम्। (१०२५) रसर्पिषा ॥९९॥ पिप्पलीना सहस्रस्य प्रयोगोऽयं रसायनम् ॥ पिष्टास्ता बलिभिः पेयाः सृतामध्यबलैनरैः ॥ १००॥ तद्वच्च . छागदुग्धेन द्वे सहले प्रयोजयेत् ॥ और क्रमवृद्धिसे दशदिनोंतक दश पीपलोंको दिन दिनके प्रति ॥९८ ॥ दूधके संग बढावे, और तैसेही फिर घटावै, और जीर्ण औषध होजावे तब दूध और घृतके संग शांठी चावलोंको खावै ॥ ९९ ॥ १००० पीपलोंका यह प्रयोग रसायनहै और बलवालोंको पीसकर पीपली पीनी योग्यहै, और मध्यम बलवाले मनुष्यको पकाई हुई पीपली पीनी योग्यहै ॥ १०० ॥ तैसेही बकरीके दूधसे २००० पीपलोंको प्रयुक्तकरै ।। एभिः प्रयोगैः पिप्पल्यः कासश्वासगलग्रहान् ॥ १०१॥ यक्ष्मामेहग्रहण्यर्शः पाण्डुत्वविषमज्वरान् ॥ नंति शोफ वमिं हिमां प्लीहानं वातशोणितम् ॥ १०२ ॥ इन प्रयोगों से प्रयुक्तकरी पीपली खांसी श्वास गलग्रह ॥ १०१ ॥ राजयक्ष्मा प्रमेह ग्रहणीरोग बवासीर पांडुपन विषमज्वर शोजा छाई हिचकी प्लीहरोग वातरक्तको नाशतीहै ॥ १०२॥ बिल्वार्थमात्रेण च पिप्पलीनां पात्रं प्रलिम्पदयसो निशायाम् ॥ प्रातः पिवत्तत्सलिलाञ्जलिभ्यां वर्ष यथेष्टाशनपानचेष्टः॥१०३ ॥ दो तोले पीपलियोंसे रात्रिमें लोहेके पात्रको लेपितकर पीछे तिसे ३२ तोले पानीके संग पीवै एकवर्षतक और इच्छाके अनुसार भोजन पान चेष्टाको करै ॥ १०३ ॥ शुण्ठीविडङ्गत्रिफलागुडूचीयष्टीहरिद्रातिवलाबलाश्च ॥ मुस्ता सुराता गुरुचित्रकाश्च सौगन्धिकं पङ्कजमुत्पलानि॥४॥धवाश्वकर्णासनबालपत्रसारास्तथा पिप्पलिवत्प्रयोज्याः ॥ लोहोप लिप्ताः पृथवेग जीवेत्समाः शतं व्याधिजराविमुक्तः ॥५॥ झूट बायविडंग त्रिला गिलोय मुलहटी हलदी गंगेरन खरेहटी नागरमोथा देवदार अग सौगंधिक कमल साधारण कमल ॥ १०४ ॥ धवके फूल रालवृक्ष आसना नेत्रवाला तेजपात अनारको लोहेपै लेपितकर पृथक २ पीपलकी तरह प्रयुक्तकरे इससे रोग और बुढापेसे विमुक्तहुआ मनुष्य १०० वर्षांतक जीवताहै ॥ १०५ ॥ क्षीराञ्जलिभ्यां च रसायनानि युक्तान्यमून्यायसलेपनानि ॥ कुर्वन्ति पूर्वोक्तगुणप्रकर्षमायुःप्रकर्ष द्विगुणं ततश्च ॥ १०६ ॥ लोहेपै लेपितकिये ये पूर्वोक्त रसायन ३२ तोले दूधसे पूर्वोक्त गुणोंके अतिशयको और आयुश्रेष्ठताके दुगुनेपनको करतेहैं ।। १०६ ।। For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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