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(१०२४)
अष्टाङ्गहृदयेतिससे इस रोगीके नीचेको और ऊपरको वारंवार दोष गमन करतेह पीछे सायंकालमें स्नेह और नमकसे संयुक्तकरी और शीतल यवागू अर्थात् गडयाणीको पावै ॥९०॥ इस प्रकारसे अपथ्योंको वर्जे और इस तेलको पांच दिनोंतक पीवै और १५दिनोंतक मूंगोंके रसके संग भोजन करनेवाला सब प्रकारके कुष्ठोंसे रहित होजाताहै ॥ ९१॥
तदेव खदिरकाथे त्रिगुणे साधु साधितम् ॥ निहितं पूर्ववत्पक्षं पिवेन्मासं सुयन्त्रितः॥ ९२ ॥ तेनाभ्यक्तशरीरश्च कुर्वन्नाहारमीरितम् ॥
अनेनाशु प्रयोगेण साधयेत्कुष्ठिनं नरम् ॥ ९३॥ तिसी तेलको त्रिगुणे खैरके क्वाथमें अच्छी तरह साधितकर और पहिलेकी तरह १५ दिन गोवरमें स्थापितकर पीछे अच्छीतरह यंत्रितहुआ मनुष्य एक महीनातक पावै ॥ ॥ ९२ ॥ सिससे अभ्यक्त शरीरवाला और पूर्वोक्त भोजनको खाता हुआ इस प्रयोगसे शीत्र कुष्ठको दूर करताहै९३॥
सर्पिर्मधुयुतं पीतं तदेव खदिरादिना ॥
पक्षं मांसरसाहारं करोति द्विशतायुषम् ॥ ९४ ॥ और यही तुवरवृक्षोंकी गुठलीका तेल खैरके विना १५ दिनोंतक पियाजावे तो मांसके. रसको भोजन करनेवाले मनुष्यको २०० वर्षकी आयुवाला करताहै ॥ ९४ ॥
तदेव नस्ये पञ्चाशदिवसानुपयोजितम् ॥
वपुष्मन्तं श्रुतधरं करोति त्रिशतायुषम् ॥ ९५॥ - और यही तेल नस्यकर्ममें ५० दिनोंतक सेवितकिया जावे तो अच्छे शरीरवाला और वेदको धारण करनेवाला और ३०० वर्षकी आयुवाला मनुष्य होताहै ॥ ९५ ॥
पञ्चाष्टौ सप्त दश वा पिप्पलीमधुसर्पिषा ॥
रसायनगुणान्वेषी समामेकां प्रयोजयेत् ॥९६॥ पांच अथवा सात और आठ अथवा दश पीपलोंको शहद और घृतके संग रसायनके गुणकी इच्छा करताहुआ मनुष्य. एक वर्षतक प्रयुक्तकरै ।। ९६ ॥
तित्रस्तिस्रस्तु पूर्वाह्ने भुक्त्वाग्रे भोजनस्य च ॥ पिप्पल्यः किंशुकक्षारभाविता घृत जताः ॥ ९७॥
प्रयोज्या मधुसंमिश्रा रसायनगुणैषिणा॥ पलाशके खारमें भावितकरी और घृतसे भुनीहुई और शहदसे संयुक्तकरी तीन पीपली प्रभातमें खाके और तीन भोजनके अग्रभागमें॥९७॥रसायनके गुणकी इच्छाकरनेवालेको प्रयुक्त करनी योग्य है।।
क्रमवृद्ध्या दशाहानि दश पैप्पलिकं दिनम् ॥९८ ॥ वर्द्धयेत्पयसा सार्धं तथैवापनयेत्पुनः॥जीर्णौषधश्च भुञ्जीत षष्टिकंक्षी
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