________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
- (४४)
अष्टाङ्गहृदयेतृष्णोष्णदाहंपित्तास्त्रविषाण्यम्बु नियच्छति ॥
दीपनं पाचनं कण्ठ्यं लघूष्णं बस्तिशोधनम् ॥ १६ ॥ और तृषा-गरमाई-दाह-रक्तपित्त-विषको दूर करता है, उष्ण पानी दीपन है पाचनहै कंठमें हित है हलका है, और बस्तिको शोधता है ॥ १६ ॥
हिध्माध्मानानिलश्लेष्मसद्यः शुद्धे नवज्वरे॥
कासामपीनसश्वासपाश्र्वरुक्षु च शस्यते ॥ १७॥ और हिचकी-आध्मान–चातरोग-कफरोग-सद्योचर-नवीनज्वर-खांसी-अंगरागे-पीनस- . श्वास-पसलीशूल-इनरोगोंमें गरम पानी हितहै ॥: १७ ॥
अनभिस्यन्दि लघु च तोयं कथितशीतलम् ॥
पित्तयुक्ते हितं दोषे व्युषितं तत्रिदोषकृत् ॥ १८॥ उबालकर शीतलकिया पानी कफको नहीं करताहै, और हलकाहै, वातपित्तमें पित्तकफमें और सन्निपातमें उबालकर दिया पानी हितहै, परंतु रात्रिका उबाला दिनमें और दिनका उवाला रात्रिमें पानी पीवै तो सन्निपात रोग उपजता है पानी औटानेमें चौथाई जलजाय तो पित्तको शान्त करताहै आधा जलजाय तौ वातको तीन भाग जलजाय तौ कफरोग दूर करताहे ॥ १८ ॥
नालिकेरोदकं स्निग्धं स्वादु वृष्यं हिमं लघु ॥
तृष्णापित्तानिलहरं दीपनं बस्तिशोधनम् ॥ १९॥ - नारिकेलि अर्थात् नारियलका पानी चिकना है, स्वादु है, वृष्यहै, बलकारी शीतल है, हलका है, और तृषा-पित्त-वातको-हरताहै दीपन है और बस्तिको शोधता है ॥ १९ ॥
वर्षासु दिव्यनादेये परं ताये वरावरे ॥
स्वादुपाकरसं स्निग्धमोजस्यं धातुवर्धनम् ॥ २०॥ वर्षाकालमें आकाशका पानी पथ्य है और नदीका पानी अपथ्य है स्वादुपाक और स्वादुरससे संयुक्त चिकना, पराक्रममें हित और धातुओंको बढानेवाला ॥ २० ॥
__ वातपित्तहरं वृष्यं श्लेष्मलं गुरु शीतलम् ॥
प्रायः पयोऽत्र गव्यं तु जीवनीयं रसायनम् ॥ २१॥ धात और पित्तको हरनेवाला, वृष्य और कफको करनेवाला, भारी और शीतल विशेषता करके दूध होता है, परंतु सर्व दूधोंमें गायका दूध अतिबलको देनेवाला और रसायन है ॥ २१ ॥
क्षतक्षीणहितं मेध्यं बल्यं स्तन्यकरं सरम् ॥ श्रमभ्रममदालक्ष्मीश्वासकासातितृट्रक्षुधः॥ २२॥
For Private and Personal Use Only