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सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् ।
(४५)
और क्षतकरके क्षीणको हित है, और पवित्र है, बलमें हित है, स्त्रीके स्तनमें दूधको करता है, और सर है, और श्रम-म-मद- दरिद्रपना- श्वास-खांसी अतितृषा- अतिक्षुधा ॥ २२ ॥
जीर्णज्वरं मूत्रकृच्छ्रं रक्तपित्तं च नाशयेत् ॥
हितमत्यग्न्यनिद्रेभ्यो गरीयो माहिषं हिमम् ॥ २३ ॥
जीर्णज्वर - मूत्रकृच्छ - रक्तपित्त - इन्होंको गायका दूध नाशता है, भैंसका दूध अति अनिवा और नींदको नहीं प्राप्त होनेवालोंके अर्थ हित है, भारी है और शीतल है ॥ २३ ॥
अल्पाम्बुपानव्यायामकटुतिक्ताशनैर्लघु ॥
आजं शोषज्वरश्वासरक्तपित्तातिसारजित् ॥ २४॥
अल्पपानीका पीना - व्यायाम - कटु और तिक्त वनस्पतियों का भोजन इन्हों को सेवनेवाली बकरी का दूध हलका है, और शोष - ज्वर - श्वास - रक्तपित्त - अतिसार को जीतता है ।। २४॥ ईषदुष्णलवणमौष्ट्रकं दीपनं लघु ॥
शस्तं वातकफानाहकमिशोफोदरार्शसाम् ॥ २५ ॥
ऊंटनी का दूध कुछेक रूक्ष है गरम है, रसमें लवणरूप है, दीपन है हलका है और बात-कफअफरा- कृमि - शोजा - उदररोग - बवासीर रोगों में श्रेष्ठ ॥ २५ ॥
मानुषं वातपितासृगभिघाताक्षिरोगजित् ॥ तर्पणाश्योतनैर्नस्यैरहृद्यं तूष्णमाविकम् ॥ २६ ॥
स्त्रीका दूध वात-रक्तपित्त - अभिघात नेत्ररोग - को जीतता है परंतु तर्पण आश्रयोतन - नस्य इन कर्मोंके द्वारा बर्ताजाता है, भेडका दूध सुंदर नहीं है. और गरम है ॥ २६ ॥
वातव्याधिहरं हिध्माश्वासपित्तकफप्रदम् ॥
हस्तिन्याः स्थैर्य कृद्वाढमुष्णं त्वेकशफं लघु ॥ २७ ॥
वातव्याधिको हरता है, हिचकी - श्वास-पित्त-कफ- को देता है हथिनीका दूध स्थिरताको करताहै, और एकशफवाले पशुओं का दूध अतिगरम होता है, और हलका है ॥ २७ ॥
शाखावातहरं साम्ललवणं जडताकरम् ॥ योऽभिस्यन्दि गुर्वामं युक्त्या शृतमतोऽन्यथा ॥ २८ ॥
शाखारूप अंगों के वातको हरता है, खट्टा है, सलोना है, जडताको करता है, बिना गरमकिया दूध 'कफको करता है, भारीहै, और युक्तिकरके गरम किया दूध कफको नहीं करता है, और हलका है ॥ २८ ॥
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