________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (१००५) लेपयेदग्धमगदैर्मधुसैन्धवसंयुतैः ॥
सुशीतैः सेचयेच्चानु कषायैः क्षीरिवृक्षजैः॥६९॥ दग्धकिये दंशको शहद और सेंधानमकसे संयुक्तकिये औषधोंसे लेपितकरै पश्चात् अत्यंत शीतल और दूधवाले वृक्षोंसे उपजे काथोंसे सेचितकरै ॥ ६९॥
सर्वतोऽपहरेद्रक्तं शृङ्गायैः शिरयापि वा ॥
'सेकालेपास्ततः शीता बोधिश्लेष्मातकाक्षरैः॥७॥ सींगी आदिसे अथवा नाडीसे सब तर्फले रक्तको निकास, पीछे पीपल ल्हेसुवाका बीज बहेडेकी गिरी इन्होंसे शीतल सेक और लेप हितहै ॥ ७० ॥
फलिनीद्विनिशाक्षौद्रसर्पिर्भिः पद्मकाह्वयः॥
अशेषलूताकीटानामगदः सर्वकामिकः॥७१॥ प्रियंगु हलदी दारुहलदी शहद घृत इन्होंका औषध सब मकडी और कीडोंके विषमें हितहै, यह पद्मकाय नामसे औषध विख्यातहै ।। ७१ ॥
हरिद्राद्वयपत्तङ्गमंजिष्ठानतकेसरैः॥
सक्षौद्रसर्पिः पूर्वस्मादधिकश्चम्पकाद्वयः॥७२॥ हलदी दारुहलदी लालचंदन मजीठ तगर केशर शहद घृत यह चंपकाय नामवाला औषध पूर्वोक्त औषधसे गुणोंमें अधिकहै ॥ ७२ ।।
तद्वद्गोमयनिष्पीडाशर्कराघृतमाक्षिकैः॥ गोबरका रस खांड घृत शहद इन्होंसे बनाया औषध पूर्वोक्त गुणोंको करताहै ।
अपामार्गमनोह्वालदा-ध्यामकगैरिकैः॥७३॥ नतैलाकुष्ठमारचयष्टयाघृतमाक्षिकैः ॥ अगदो मन्दरो नाम तथाऽन्यो गन्धमादनः॥७४॥
नतरोध्रवचाकट्टीपाठैलापत्रकुंकुमैः॥ और ऊंगा मनशिल हरताल दारुहलदी रोहिषणतृण गेरू ॥ ७३ ॥ तगर इलायची कूठ मिरच मुलहटी घृत शहद यह मंदरनामवाला औषध पूर्वोक्त गुणोंको करताहै और यह वक्ष्यमाण गंधमादन नामवाला औषधहै ॥ ७४ ॥ तगर लोध वच कुटकी पाठा इलायची तेजपात केशर इन्होंकरके ।। ( ये लेपमें हितहैं )
विषघ्नं बहुदोषेषु प्रयुंजीत विशोधनम् ॥ ७५॥ और बहुत दोषोंवाले मनुष्योंमें विषको नाशनेवाले शोधनको प्रयुक्त करै ॥ ७९ ॥
यष्टयाह्नमदनांकोल्लजालिनीमिन्दुवारिकाः॥ कफे श्रेष्ठाम्बुना पीत्वा विषमाशु समुद्रमेत् ॥७६ ॥
For Private and Personal Use Only