________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(९६४)
अष्टाङ्गहृदयेषडहात्सप्तरात्राद्वा शुक्र गर्भाशयान्मरुत् ॥ ३८॥
वमेत्सरुङ्नीरुजो वा यस्याः सा वामिनी मता॥ और छः रात्रिसे अथवा सात रात्रिसे वीर्यको गर्भाशयसे वायु ॥ ३८ ॥ पीडासे संयुक्तहुआ अथवा पीडासे रहितहुआ जिसकी योनिसे गिरा देताहै वह वामिनी कहीहै ।।
योनौ वातोपतप्तायां स्त्रीगर्भे बीजदोषतः॥ ३९॥
नृवषिण्यस्तनी च स्यात्षण्ढसंज्ञानुपक्रमा॥ और वातकरके तप्तहुई योनिमें स्त्रीके गर्भमें वीर्यके दोषसे ॥ ३९ ॥ पुरुषसे वैर करनेवाली 'और चूंचियोंसे रहितं षंढसंज्ञक स्त्री होतीहै इसकी चिकित्सा नहींहै ॥
दुष्टो विष्टभ्य योन्यास्यं गर्भकोष्ठं च मारुतः॥४०॥ कुरुते विवृतां स्रस्तां वातिकीमिव दुःखिताम् ॥
उत्सन्नमासांतामाहुर्महायोनि महारुजाम् ॥ ४१ ॥ और दुष्टहुआ वायु योनिके मुखको और गर्भकोष्ठको विष्टंभितकर ॥ ४० ॥ शिथिलरूप और वातकी व्यापत्की समान दु:खित और विवृत योनिको करताहै और ऊंचे मांसवाली होजाती है और महापीडासे संयुक्त होती है तिसको महायोनि कहतेहैं ॥ ४ १ ॥
यथास्वैर्दूषणैर्दुष्टं पित्तं योनिमुपाश्रितम् ॥ करोति दाहपाकोषापूतिगन्धज्वरान्विताम् ॥४२॥ भृशोष्णभूरिकुणपनीलपीतामितार्तवाम्॥
सा व्यापत्पत्तिकीयथायोग्य अपने निदानआदिसे दुष्टहुआ पित्त योनिमें प्राप्तहोके दाह पाक अंतरदाह पूतिगंध ज्वरसे युक्त ॥ ४२ ॥ और अत्यन्त गरम और बहुतसी मुरदेके समान गंधसे संयुक्त और नील तथा पीले तथा काले आर्तवसे संयुक्त योनिको करताहै । यह पैत्तिकी व्यापत्है
__ रक्तयोन्याख्यासृगतिस्रुतेः॥४३॥ और रक्त के अत्यन्त स्त्रावसे रक्तयोनिनामवाली व्यापत होजातीहै ॥ ४३॥
कफोऽभिष्यन्दिभिः क्रुद्धः कुर्याद्योनिमवेदनाम्॥ , शीतलां कण्डुलां पाण्डुपिच्छिलां तद्विधनुतिम् ॥४४॥
सा व्यापच्छैष्मिकीअभिष्यंदी पदार्थोंसे कोपित हुआ कफ पीडासें वर्जित और शीतल और खाजवाली पांडु तथा पिच्छिलरूप स्वाववाली योनिको करताहै ॥ ४४ ॥ यह श्लौष्मिकी व्यापत् है ॥
वातपित्ताभ्यां क्षीयते रजः॥ सदाहकार्यवैवयं यस्या सा लोहितक्षया॥४५॥
For Private and Personal Use Only