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(९६२)
भष्टाङ्गहृदये- मास्पाकः सर्वजः सर्ववेदनो मासशातनः ॥ २३॥
और सब दोषोंसे उपजा और सब प्रकारकी पीडाओंवाला और मांसको काटनेवाला मांस्पाक कहाहै ॥ २३ ॥
सरागैरसितैः स्फोटः पिटिकाभिश्च पीडितम् ॥
मेहनं वेदनाश्चोग्रास्तं विद्यादसृगर्बुदम् ॥२४॥ कुछेक लाल रंगवाले और कृष्णरंगवाले फोडे और फुनसियोंसे पीडित लिंग होवे और उग्रपीडाओंसे संयुक्तहो तिसको रक्तार्बुद जानो ॥ २४ ॥
मांसाबुंदं प्रागुदितं विद्रधिश्च त्रिदोषजः॥ त्रिदोषसे उपजा मांसार्बुद ग्रंथ्यादिरोगविज्ञानीयमें पहिले कहदियाहै और त्रिदोषसे उपजी विद्रधीभी पहिले कहदीगईहै ॥
कृष्णानि भूत्वा मांसानि विशीर्य्यन्ते समन्ततः ॥२५॥
पक्कानि सन्निपातेन तान्विद्यात्तिलकालकान् ॥ और काले मांसहोके सब तर्फसे विखरि जावे ॥ २५ ॥ और सन्निपातसे पकिजावें तिन्होंको तिलकालक जानों ॥ . .
मांसोत्थमबुंदं पाकं विद्रधि तिलकालकान् ॥२६॥
चतुरो वर्जयेदेताञ्छेषाञ्छीघ्रमुपाचरेत् ॥ और इन सबोंके मध्यमें मांसार्बुद मांसपाक विद्रधी तिलकालक ॥ २६ ॥ इन चारोंको वर्जे और शेषरहे १६ रोगोंको शीघ्र उपाचारित करें ।।। विंशतिळपदो योनेर्जायन्ते दुष्टभोजनात्॥२७॥ विषमस्थाङ्गशयनभृशमैथुनसेवनैः॥दुष्टार्त्तवादपद्रव्यैर्बीजदोषेण देवतः॥ ॥ २८॥ योनौ क्रुद्धोऽनिलः कुर्याद्रुक्तोदायामसुप्तताः॥ पिपीलिकासृप्तिमिव स्तम्भं कर्कशतां स्वनम् ॥ २९ ॥ फेनिलारुणकृष्णाल्पतनुरूक्षार्तवस्रुतिम् ॥ स्रंसं वंक्षणपादौ व्यथां गुल्मं क्रमेण च ॥३०॥ तांस्तांश्च स्वान्गदान्व्यापद्वातिकी नाम सा स्मृता॥ वीस रोग योनिसे उपजतेहैं दुष्टभोजनसे ॥ २७ ॥ विषम स्थितहुये अंगकरके शयन और अत्यंत मैथुनका सेवन इन्होंकरके और दुष्टआर्तवसे और बुरे द्रव्योंसे और वीर्यके दोषसे और देवसे ॥ २८ ॥ योनिमें क्रुद्धहुआ वायु पीडा चमका आयाम सुप्तपना पिपीलिका अर्थात् कीडीकी चलनेकी तरह स्तंभ कर्कसपना और शब्द ॥ २९ ॥ झाग लाल और कृष्ण और अल्प पतला
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