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उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् ।
एकत्रिंशोऽध्यायः। अथातः क्षुद्ररोगविज्ञानीयमध्यायं व्याख्यास्यामः। इसके अनंतर क्षुद्ररोगविज्ञानीयनामक अध्यायका व्याख्यान करेंगे।
स्निग्धा सवर्णा ग्रथिता नीरुजामुद्गसम्मिता ॥
पिटिका कफवाताभ्यां बालानामजगल्लिका ॥१॥ स्निग्ध समानवर्ण कररी रोगरहित मूंगके समान फुनसी कफवातसे बालकोंको अजगल्लिका होजातीहै ॥ १ ॥
यवप्रख्या यवप्रख्या ताभ्यां मांसाश्रिता घना ॥ और जवके समान आकारवाली बातसे और कफसे उपजी मांसके आश्रय और कठिन फुनसी यवप्रख्या होजातीहै ॥
अवाश्चालजीवृत्तास्तोकाया घनोन्नताः ॥ २॥
ग्रन्थयः पञ्च वा षड्वा कच्छपी कच्छपोन्नता ।। और विनामुखवाली और अलजीकी समान गोल और कुछेक राद झिरनेवाली ऊंची कठोर॥२॥ पांच और छः ग्रंथि कहीहैं, और कछुएकेसी ऊंची कच्छपी कहीहै ।
कर्णस्योचे समन्ताद्वा पिटिका कठिनोग्ररुक ॥३॥
शालूकाभा पनसिकाऔर कानके चारोंतरफ फुनी करडी और बहुत रोगवाली होतीहैं ॥ ३ ॥ और कमलके कंदकेसी कातिवाली पनसिका होतीहै ।
शोफस्त्वल्परुजः स्थिराः॥ हनुसन्धिसमुद्भूतास्ताभ्यां पाषाणगर्दभः॥४॥ और अल्पशूलवाली और स्थिर ठोडीकी संधिमें वातकफसे उपजी फुनसी पाषाणगर्दभहै॥४॥
शाल्मलीकण्टकाकाराः पिटिकाः सरुजो घनाः ॥
मेदोगर्भा मुखे यूनां ताभ्यां च मुखदूषिकाः॥५॥ और शाल्मलिके कांटेके आकारवाली और पीडाको करनेवाली और कररी और मेदरूप गर्भसे संयुक्त जवान पुरुषोंके मुखपै कफ और वातसे उपजनेवाली फुनसियां मुखदूषिका कहातीहैं॥५॥
ते पद्मकण्टका ज्ञेया यैः पद्ममिव कण्टकैः ॥
चीयते नीरुजैश्चैतैः शरीरं कफवातजैः॥६॥ कफ वातसे उपजनेवाले और पीडासे रहित कांटोंसे कमलकी तरह संचित पद्मकंटक जानने योग् यहैं ॥ ६॥
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