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(९५०)
अष्टाङ्गहृदयेपित्तेन पिटिका वृत्ता पक्वोदुम्बरसन्निभाः॥
महादाहज्वरकरी. विवृता विवृतानना ॥७॥ पित्तसे उपजीहुई और गोल और पकेहुए गूलरके फलके सदृश और अत्यंत दाहसे ज्वरको करनेवाली और विवृत मुखवाली ऐसी फुनसी विवृता होतीहै ॥ ७ ॥ .. गानेष्वन्तश्च वक्रस्य दाहज्वररुजान्विताः॥
मसूरमात्रास्तद्वर्णास्तत्संज्ञाः पिटिका घनाः ॥ ८॥ · अंगोंमें और मुखके भीतर दाह ज्वर पीडासे युक्त और मसूरके समान प्रमाण वर्णवाली कररी फुनसियां मसूरिका कहातीहैं ॥ ८ ॥
ततः कष्टतराः स्फोटा विस्फोटाख्या महारुजाः॥ तिन मसूरिकाओंसे अत्यंत कष्टरूप और तीन पीडावाले फोडे विस्फोटसंज्ञक कहातेहैं ।
या पद्मकर्णिकाकारा पिटिका पिटिकान्विता ॥९॥ __ सा विद्धा वातपित्ताभ्यां
और जो कमलकी कर्णिकाके सदृश और अन्य फुनसियोंसे युक्त पुनसीं होतीहैं वे ॥ ९॥ वातपित्तसे उपजी विद्धा कहातीहैं ।
_ ताभ्यामेव च गर्दभी॥ मण्डला विपुलोत्सन्ना सरागपिटिकाचिता ॥ १०॥ और वात पित्तसेही गर्दभी फुनसी होतीहैं परंतु मंडलके आकार और विस्तारवाली तथा ऊंची और रागसहित फुनसियोंसे व्याप्त होतीहै ॥ १० ॥
कक्षेति कक्षासन्नेषु प्रायो देशेषु सानिलात् ॥ काखके निकट देशोंमें विशेषकरके वायुसे उपजी गर्दभी फुनसी कक्षा कहातीहै ।
पित्ताद्भवन्ति पिटिकाः सूक्ष्मा लाजोपमा घनाः ॥ ११ ॥ . और पित्तसे उपजी कक्षा सूक्ष्म और धानकी खीलकी सदृश और कररी फुनसियाँ होतीहैं ११॥
तादृशी महती त्वेका गन्धनामेति कीर्तिता ॥ धर्मस्वेदपरीतेऽङ्गे पिटिकाः सरुजो घनाः ॥१२॥
राजिकावर्णसंस्थानप्रमाणा राजिकाह्वयाः ॥ और वही धानकी खीलके सदृश बडी एक फुनसी होवे तो गंधनामा कहातीहै और घाम तथा पसीनेसे युक्त ये अंगमें पीडासे संयुक्त और करडी फुनसियां ॥ १२ ॥ राजिका संज्ञक कहीहैं, ये राईका वर्ण और संस्थानके समान प्रमाणवाली होतीहैं ॥
दोषैः पित्तोल्बणैर्मन्दैविसर्पति विसर्पवत् ॥ १३ ॥ शोफोऽपाकस्तनुस्ताम्रो ज्वरकृजालगर्दभः॥
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