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(९४८)
अष्टाङ्गहृदयेश्लैष्मिकीं तिलसौराष्ट्रीनिकुम्भारिष्टसैन्धवैः ॥ ३६ ॥ और कफकी नाडीको तिल फटकडी शहद जमालगोटेकी जड रीठा सेंधानमक इन्होंसे मालिशकरै॥ ३६॥
शल्यजां तिलमध्वाज्यैलेंपयेच्छिन्नशोधिताम् ॥ अशस्त्रकृत्यामेषिण्या भित्त्वान्ते सम्यगेषिताम् ॥ ३७॥
क्षारपीतेन सूत्रेण बहुशो दारयेद्गतिम् ॥ और शल्यजा नाडीको छेदनकर और शुद्धकर तिल शहद घृतका लेपकरे और मेषिण्यानाडीको शोधनकरके लेपकः ॥ ३७ ॥ और गतिको क्षार पीत सूत्र करके बहुतबार विदीर्णकरे ॥
व्रणेषु दुष्टसूक्ष्मास्यगम्भीरादिषु साधनम् ॥ ३८॥
या वो यानि तैलानि तन्नाडीष्वपि शस्यते ॥ और बिगडे सूक्ष्म मुखवाले गंभीर व्रणोंमें साधनकरै ॥ ३८ ॥ और जो वार्तहै और जो तेलहै. सो संपूर्ण नाडीरोगमें इलाजकरे ॥
पिष्टं चंचुफलं लेपान्नाडीव्रणहरं परम् ॥ ३९॥ और अरंडके फलोंको पीस लेपकरे तो नाडीव्रणको हरताहै ।। ३९ ॥ घोण्टाफलत्वग्लवणं सलाक्षं बूकस्य पत्रं वनितापयश्च ॥ शुगर्कदुग्धान्वित एष कल्को वर्तीकृतो हन्त्यचिरेण नाडीम्॥४०॥
और सुपारीके वृक्षकी छाल सेंधानमक लाख अरंडका पत्ता स्त्रीका दूध गिलोय थूहरका और आकका दूध इन्हों के कल्ककी बत्ती बनादेवे तो थोडेही कालमें नाडीको नष्ट करतीहै ॥ ४० ॥ .
सामुद्रसौवर्चलसिन्धुजन्मसुपक्वघोण्टाफलवेश्मधूमाः॥ आम्रातगायत्रिजपल्लवाश्च कटङ्कटेवथ चेतकी च ॥४१॥ कल्केऽभ्यते चूर्णे वर्त्यां चैतेषु सेव्यमानेषु॥ .
अगतिरिव नश्यति गतिश्चपला चपलेषु भूतिरिव ॥ ४२॥ और मामुद्रनमक कालानमक सेंधानमक अच्छी पकी सुपारी घरका धूवाँ आँवडे और खैरके पत्ते और कटहलीके पत्ते हरडै ।। ४१ ॥ और कल्क मालिश चूर्ण बत्ती इन्होंको सेवनकरे तो अगतिकी तरह गति नष्ट होतीहै, जैसे चपल, मनुष्योंमें धनका नाश होजाताहै तैसे ॥ ४२॥ इति बेरीनिवासिवैद्यपडितरविदत्तशास्त्रिकृताऽष्टांगहृदयसंहिताभाषाटीकाया
मुत्तरस्थाने त्रिंशोऽध्यायः ॥३०॥
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