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ऐच्छिक
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leaved-physic-nut ] कानन एरंड । जंगली रेंड । बनभेरण्ड - ( बं० ) । ऐच्छिक - वि० [सं० त्रि० ] जो अपनी-अपनी इच्छा या पसंद पर निर्भर हो । जो अपनी इच्छानुसार हो या हो सके । इच्छाधीन । वैकल्पिक | Voluntary. मुहर्दिक-बिल्इादः - श्र० । जैसेऐच्छिक गति; ऐच्छिक -मांस |
ऐच्छिक कला - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] इच्छाधीन
कला ।
ऐच्छिक-गति–संज्ञा स्त्री० [सं० ] शरीर की वह गति, जो हमारी इच्छानुसार होती है और हो सकती है । जैसे, चलना, फिरना, बोलना, हाथ उठाना, भोजन चबाना । इच्छाधीन-गति । ऐच्छिक मांस-पेशी - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] एक प्रकार का मांस तंतु, जो कंकाल से लगा हुआ और पेशियों में विभक्त होता है । इच्छाधीन मांस । (Voluntary-muscle.) I ऐज़ा अजा - [ यू०] एक वृक्ष जो ऊन की तरह होता है । कोई-कोई कहते हैं, कि इसकी डालियों पर ऊन की तरह एक चीज़ होती है। किसी-किसी ..के मत से यह एक उद्भिज है, जिसकी पत्तियाँ " श्रास" की पत्तियों की तरह जड़ और पत्तों में से अंगूर की बेल की तरह एक लंबे डोरे की तरह श्राकर्षणी निकलती है, जो श्रास-पास के वृक्षों पर चिमट जाती हैं । इन तंतुओं की छोरों पर फूल लगते हैं। इसके चर्वण से जिह्वा पर अत्यन्त खिंचावट प्रतीत होती है । टिप्पणी - गीलानी के अनुसार यह शब्द फ़ारसी के सदृश है ।
होती हैं । इसकी
गुण-धर्म, प्रयोग —
इसके नौ माशे चूर्ण खाने से रक्तपात रुक जाता है और अतीसार की शांति होती है । यह श्रांत्रत में उपयोगी है। इसके प्रयोग से श्रार्त्तव स्त्राव और गर्भाशयिक परिस्राव रुक जाता है । यही गुणइसके हरे एवं शुष्क पत्तों के प्रलेप से भी होता
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है। जड़ में संग्राहक शक्ति विशेष है । यह समस्त अंगों से रक्रक्षरण होने को भी रोकता है । ( ख० श्र०)।
ऐजाडिरेक्टा - इंडिका- [ ले०
ऐञ्जलिका
ऐजे कोल - [ श्रं० a jecol ] एक प्रकार का तैलीय द्रव, जिसे वेदना दूर करने के लिये व्यथा-स्थान पर लगाते हैं । दे० "चाएकोल" ।
ऐज्मा - [ श्रं० asthma ] श्वासरोग । दमा । बुहर ।
ऐज्मा पाउडर - [
azadirachta
indica ] नीम वृक्ष । श्राज्ञाद- दरख्ते हिंदी |
० asthma-powder]
श्वासहर चूर्ण | दे० " पोटेशियाई नाइट्रास" वा " शोरा" ।
ऐजमा-वीड [अं॰ asthma-weed] एक प्रकार का पौधा ।
ऐजेलिका -[ श्रं० angelica ] श्रार्कश्रञ्जेलिका fafafa ( Archangelica-officinalis. )
पर्याय- श्र०ऐट्रोपरिया (A. Atropurpurea ) ले० । गार्डेन श्रङ्गेलिका (Garden angelica ) इं० । सुम्बुले ख़ताई - श्रु० । श्रङ्गलीनहू - फ्रा० । बालछड़ भेद - हिं० | ( पी० वी० एम; ई० है० गा० ) गर्जर वा अजमोदादि वर्ग
(N. O. Umbelliferce.) उत्पत्तिस्थान — यूरूप का एशिया और अमेरिका ।
उत्तरी भाग,
वानस्पतिक विवरण - यह चुप २ से ४ फीट ऊँचा, द्विवर्षीय एवं जलीय स्थलों में उगता है और लगभग समग्र संयुक्रराज्य में मार्ग-तटों पर सरसब्ज़ नज़र आता है। इसमें जून से सितम्बर मास तक पुष्प श्राते हैं। कलियाँ हरित-श्वेत होती हैं। इसकी जड़ वृहत् मांसल ( गूदादार ), रालदार, चरपरी और सुगंधियुक्त होती है । हैम्बर्ग (Hamburg ) से यह श्रौषधी शुष्कावस्थामें लाई जाती है । लंडन के चतुर्दिक भी इसकी कृषि की जाती है ।
प्रयोगांश-मूल, पौधा और बीज । औषध-निर्माण एवं मात्रा -
जड़ का चूर्ण; ३० से ६० ग्रेन ( १५-३० रत्ती ) । तरल सत्व ( जड़ का ); ३० से ६० मिनिम ( बूँद ) । तरल सत्य ( बीज का ); ५ से ३० मिनिम ( बूँद ) ।