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________________ २४३३ . औषध-निर्माण-टिंक्चर वा पासव (१० मीठाकुनरु-स्वादु, शीतल, भारी, रक्तपित्त में १ भाग)। नाशक, वातविनाशक, स्तम्भन, लेखन, रुचिकारक __ मात्रा से । ड्राम । प्रकांड और पत्र काथ तथा विबंध (मलमूत्ररोधक) और आध्मान(१० में १), मात्रा-1 से १ श्राउंस । सूखी कारक है। छाल का चूर्ण, मात्रा-२ मा० । मूल स्वरस- बिम्बिका मधुरा शीता कफ वान्ति करा मता। मात्रा-१ से ३ ड्राम । कांड और पत्र-स्वरस रक्तपित्त क्षय श्वासकामला पित्त शोफकान् ॥ मात्रा-१ से २ पाउंस खाली पेट । मूल और पत्र स्वरस-मात्रा-१ से २ तोले । रक्तरुग्विष कासांश्च रक्तपित्त ज्वरान्हरेत् । गुण धर्म फलमस्या गुरुः स्वादुः शीतलं लेखनं मतम् ।। आयुर्वेदीय मतानुसार-(मधुर वा गृहबिम्बी) भलस्तम्भकरं स्तन्यमुदरे वातसंचयम् । तुण्डिका कफपित्तामृक्शोफपाण्डु ज्वरापहा । रुच्यं पित्तं रक्तदोष वाताञ्छ्वासं च नाशयेत्।। श्वासकासापहं स्तन्यं फलं वातकफापहम् ॥ शोथ वृद्धिदाह कास श्वास नाशकरं मतम् । बिम्बीफलं स्वादु शीतं स्तम्भनं लेखनं गुरुः । पुष्पमस्याः कण्डुपित्त कामला नाश कारकम ॥ पित्तास्रदाह शोफघ्नं वाताध्मान विबन्धकृत ॥ अस्या पणेद्भवा शाका शीतला मधुरा लघुः । (ध०नि०) ग्राहका तुवरा तिक्ता पाके कट्वी च वातला॥ कड़वे कुदरू की जड़ और पत्ती-कफ, रक्त- कफपित्तहरा प्रोक्ता पूर्वैवैद्यवरैः स्फुटम् । पित्त, शोथ, पांडु, ज्वर, श्वास एवं कासनाशक मूलमस्या हिमं मेहनाशनं धातुवद्धकम् ।। तथा स्तन्यप्रद है । फल वात कफापह है। स्वादु बिम्बीफल अर्थात् मीठा कुदरू-स्वादु, शीतल, हस्तदाह हर भ्रान्ति वान्ति नाशकरं मतम् । स्तम्भन, लेखन और गुरु है तथा रक्तपित्त, दाह, कदूरी-मधुर; शीतल, कफकारक, वमनजनक शोधनाशक एवं वायुप्रकोप तथा प्राध्मानकारक तथा रक्तपित्त, श्वास, कामला, पित्तकी सूजन, और मलमूत्र रोधक है। रुधिरविकार, विषदोष, खाँसी, रक्रपित्त और ज्वर को दूर करती है । इसके फल--भारी, स्वादिष्ट, बिम्बी तु मधुरा शीता पित्त श्वास कफापहा । शीतल, लेखन, मलस्तम्भक, स्तन्यकारक, उदर अमृग ज्वरहरा रम्या कासजिद्गृह बिम्बिका।। में वायु को संचित करनेवाले, रुचिकारक तथा __ (रा० नि० व०७) पित्त, रुधिर विकार, वात, श्वास, सूजन, वृद्धि, मीठा कुंदरू-मधुर, शीतल, पित्त, श्वा । दाह, खाँसी और श्वास ( दमे ) को हरने वाले एवं कफनाशक तथा ज्वर, रक्तविकार और कास हैं। इसके फूल-कण्डू, पित्त एवं कामला को दूर नाशक है। करनेवाले हैं। इसके पत्तों का शाक--शीतका, बिम्बीफलं स्वादु शीतं स्तन्य कृत्कफ पित्तजित् । मधुर, हलका, मलरोधक, कसेला, पाकमें चरपरा, हृद्दाह ज्वर पित्तास्र कास श्वास क्षयापहम ॥ बादी तथा कफ और पित्त का नाश करता है। (शो. नि.) इसकी जड़---शीतल, प्रमेहनाशक, धातुवर्द्धक कदूरी-स्वादिष्ट शीतल, स्तन्यकारक, कफ तथा हाथ-पांवों की दाह, वान्ति और भ्रांति को पित्तनाशक तथा दाह, ज्वर, रनपित्त, खाँसी श्वास शांत करती हैं। और क्षय रोग का नाश करती है। केयदेव के अनुसार यह वातकारक, कफकारक बिम्बीफलं स्वादु शीतं गुरु पित्तास्र वातजित् । पाक में चरपरा, संग्राही, क्षय एवं शोथनाशक, स्तम्भनं लेखनं रुच्यं विबंधाध्मान कारकम् । कामला नाशक और रनपित्तनाशक है तथा वात, (भा.) प्राध्मानादि एवं विबंधकारक है। द्रव्यरत्नाकर
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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