SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 690
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कंघी इससे सरलतापूर्वक कफ निःसृत होता है । नाना प्रकार की सूजनों पर इसके बीज पानी में पीसकर लेप करने से सूजन उतर जाती है। 'फुफ्फुस शोथ और फुफ्फुसावरण शोथ में इससे उपकार होता है। २४२२ इसकी जड़ के लेप से कान के पीछे की सूजन और स्तन की सूजन मिटती है । इसकी जड़ घी में पकाकर ( खनाज़ीर ) के रोगी को खिलाने से और उस पर बाँधने से बहुत उपकार होता है। इसके खाने से हृदय को शक्रि प्राप्त होती है और चेहरे का रंग निखरता है जड़ का फांट दीर्घकाल तक पिलाने से कुष्ठ रोग श्राराम होता है । 1 नव्य मतानुसार मोहीदीन शरीफ - पत्र मृदुताकारक, बीज स्निग्धता संपादक थोर किंचिन् मूत्रल है। इसकी पत्ती में कुछ लुनाबी पदार्थ होता है, जो पत्ती को उष्ण जल में रखने से पृथक् । हो जाता है। इस लिये इसके काढ़े का सेंक वेदना पूर्ण भागों के. लिये उपकारी है । पूयमेह, चिरकालानुबंधी पूयमेह ( Gleet ) और चिरकारी वस्तिप्रदाह पर इसके बीजों का नियंत्रण स्पष्टतया लक्षित होता है । ( Materia Medica of Madras P. 68) आर० एन० खोरी -- बीज स्निग्धता- संपादक हैं इसकी जड़ की छाल मूत्रल और शैत्यजनक ( Cooling ) है, अतएव पूयमेह, मूत्रकृच्छ ( Stranguary ) श्रादि रोगो में ख़त्मी की तरह इसका भी उपयोग होता है । (Materia Medica of India—I1 P. 92 ) ऐन्सली - ज्वरों में शीत संपादनीय श्रोषध रूप से कंघी की पत्तियों वा जड़ का फांट ( Infusion ) प्रयोग में आता है । थॉम्पसन तथा वैट - कंधी के बीज कामोड़ीपन श्रोर शुक्रप्रमेहहर हैं । श्रर्श में ये कोष्ठ मृदुकर रूप से व्यवहार में श्राते हैं । सूत्र - कृमि ( Thread worm ) से पीड़ित शिशुओं को गुदा को कंघी के बीजों की धूनी देते हैं। कंधी आर० एन० चोपरा कंघी की पत्तियों को पानी में भिगोने से एक प्रकार का लुनाब प्राप्त होता है, जिसका ज्वर तथा उरो व्याधि और पूयमेह तथा मूत्रमार्ग प्रदाह में भी सूत्रकर एवं स्निग्धता संपादक रूप से उपयोग किया गया है । इसके बीजों का महीन चूर्ण १ से २ ड्राम की मात्रा में कोष्ठमृदुकर एवं श्लेष्मानिः सारक रूप से प्रयोग में श्रा सकता है । ( Indigenous drugs of India P. 560 ) । इमर्सन - दंतशूल और मसूदों के कोमल हो जाने की दशा में कंघी को पत्तियों का काढ़ा मुख धावन रूप से व्यवहार में श्राता है। नार्मन - उपयुक्त काढ़े का सूजाक ओर वस्ति प्रदाह में भी उपयोग होता है । थॉमसन — मूत्ररोध ( Stranguary ) घर र मूत्रता में इसकी जड़ का फांट उपयोगी होता है। इसकी जड़ का फांट कुष्ठ में उपकारी बतलाया जाता है | कास की चिकित्सा में इसके बीज काम में आते हैं। नियों के अनुसार हाँग काँग में कंघी के बीज मृदुतकारक और स्निग्धता-संपादक रूप से काम श्राते हैं। जड़ मूत्रल और फुफ्फुसीय अवसादक रूप से व्यवहृत होती है । विस्फोटक ( Boils ) औरतों पर कंधी के फूल और पत्ती का स्थानीय उपयोग होता है । पोर्टर स्मिथ के कथनानुसार इसके बीज और समग्र पौधा स्निग्धता-संपादक, तारल्यजनक, मूत्रकर, , कोष्ठ मृदुकर और ( Discutient) श्रौषध रूप से व्यवहार होते हैं । बी० डी० वसु-सूतिका रोग, मूत्र-विकार, चिरकारो रक्क्रामाशय तथा ज्वर श्रादि रोगों का उपचार कंघी के बीजों से किया जाता है । ( lndian Modioinal Plants ) कंघी की पत्तियों का स्वरस और घी प्रत्येक १ तोला । प्रातिश्यायिक एवं पित्तातिसार में इसका व्यवहार होता है । अर्श में इसके बीजों का कास- चिकित्सा में भी उक्त काढ़ा प्रयुक्त होता है । काढ़ा काम आता है ।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy