________________
एसिड नाइट्रिकम्
iticum ]
एसिडम्- नाइट्रिकम् - [ ले० acidum एक प्रकार का अम्ल जो शोरे पर घन गंधकाम्ल डालकर तपाने से प्राप्त होता है । नत्रिकाम्ल । शोरकाम्ल । शोरे का तेज़ाब | ( Nitric acid ) दे० " नत्रिकाम्ल " |
एसिडम्- नाइट्रिकम् - डायल्यूटम् - [ ले० acidum - mitrican-dilutam ] जलमिश्रित नत्रिकाम्ल । दे० 'नत्रिकाम्ल " |
एसिड नाइट्रो-म्युनिकेटम् -[ ले० acidum nitro-muricatum ] शुद्ध नत्रिक उदहरि
काम्ल । अलराज ।
एसिडम्- नाइट्रो - हाइड्रोक्लोरिकम् - [ ले० acidum •
vit o hydro-cloricum ] अम्लराज | एसिडम्-पारोगैलिकम् - [ ले०_acidum-pyro
gillicum ] पाइरोगैलिक एसिड Pyrogallic acid. पाइरोगैजोल Pyrogallol (श्रं० ) । पाइरोगैलिकाम्ल - (हिं० ) । हामिज़ पाइरोगैलिक ।
रासायनिक सूत्र
C Н
6. (0H, ) असम्मत ( Not Official.) निर्माण विधि - माचिकाम्ल (Gallic acid) को १८५ से २०० शतांश के ताप पर ऊर्ध्वपातित करने से वह पाइरोगैलिक एसिड और कार्बनिक में विच्छिन्न हो जाता है ।
लक्षण - इस तेज़ाब के लघु श्वेतवर्ण के स्फटिकीय गुच्छे होते हैं। तीव्र प्रकाश से यह रंगीन हो जाता है, विशेषतः इसका सोल्युशन । अस्तु, इसको प्रकाश में न रखकर किसी गम्भीर अम्बरी वर्ण की दृढ़ डाटवाली शीशी में रखना चाहिये । विलेयता - यह १ भाग २1⁄2 भाग पानी में तथा एलकोहल, ईथर और वसा में विलीन हो जाता है।
3.
१८०१
प्रभाव - धारक (astringent.) और शोणित-स्थापक (Hemostatic )।
मात्रा - 2 से 9 1⁄2 ग्रेन तक ।
नोट - अहोरात्र में १५ ग्रेन से अधिक कदापि सेवन न करे, अन्यथा उग्र विषाक्रता उपस्थित होने की श्राशंका रहती है ।
८००
एसिडम् पाइरोगै कम आक्सिडाइज्ड
गुणधम तथा उपयोग
इस अम्ल को अधिकतर छाया चित्रों (फोटो ग्राफी) में तथा नाइटेट आफ सिल्वर के साथ मिलाकर केशरञ्जन में प्रयोगित करते हैं । पर कोई कोई डाक्टर विचर्चिका ( Psoriasis. ) आदि रोगों में इसका वाह्य और रक्र-निष्ठीवन (हिमापटिसिस) प्रभृति में आभ्यन्तर प्रयोग भी करते हैं । अस्तु, इसका १० प्रतिशत का घोल बुरुश द्वारा विचर्चिका प्रभृति रोगों में वाह्य रूप से लगाते और रक्त-निष्ठीवन प्रभृति रोगों में इसका श्राभ्यन्तरिक उपयोग करते हैं । इसका १० प्रतिशत का घोल विचर्चिका पर दिन में दो बारबुरुरा से लगाकर उसे रूई से या स्वच्छ वस्त्र - खण्ड से श्राच्छादित करना प्रायः लाभकारी सिद्ध हुआ एक श्रोंस फ्लेक्सिब्ल कलोडियम् में ४० ग्रेन उक्त अम्ल योजित कर भी विचर्चिका पर लगाते हैं । इसका यह प्रलेप भी श्रतीव गुणकारी है— पाइरोगेलिक एसिड ३० प्रन, एक्थियोल ३० ग्रेन, एसिड सैलीसिलिक १५ ग्रेन और साफ्ट पेराफिन १ स पर्यन्त ।
1
एसिडम्- पाइरोगैलिकम् - आक्सिडाइज्ड - [oacid
um-pyrogallicum-oxidised ] एक प्रकार का कालापन लिए भूरा चूर्ण; जिसे पाइरेलाक्सीन ( Pyralosin ) भी कहते हैं । यह जल में शीघ्र घुल जाता है । यह न तो विषवत् प्रभाव करता है और न इससे त्वचा पर प्रदाह ही उत्पन्न होता है । हाल ही में इसकी कतिपय चर्म रोगों में परीक्षा की गई और इसे लाभदायक पाया गया । विचर्चिका रोग पर इसका यह मलहम वा घोल लगाने से अत्यन्त उपकार होता है
मलहम - पाइलाक्सोन ३० ग्रेन, सैलिसिलिक एसिड १० ग्रेन और वैज़ेलीन १ औंस | घोल- १ भाग, पाइरेलाक्सीन को २ भाग बेंज़ोल वा ८ भाग एसीटोल में मिलाकर रोगस्थल पर लगाएँ ।
नोट- - उम्र व्याधियों में वा जब वह तीव्र गति से फैल रही हो तब इसका व्यवहार न करें । परंतु जब उक्त व्याधि की वृद्धि रुक गई हो और वह घटनेलगीहो उस समय इसके उपयोगसे प्रायः लाभ हुआ करता है।