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कहवा
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कहवे के पौधे के लिये गरम देश की बलुई दोमट भूमि अच्छी होती है तथा सब्ज़ी, हड्डी, खली श्रादि की खाद उपकारी होती है । इसके बीज को पहले अलग बोते हैं। फिर एक साल के बाद इसे चार से आठ फुट की दूरी पर पंक्रियों में बैठाते हैं। तीसरी वर्ष इसको फुनगी कुपट दी जाती है जिससे इसकी बाद बंद हो जाती है । इसके लिये अधिक वृष्टि तथा वायु हानिकारक होती है । बहुत तेज धूप में इसको बाँसों की ट्टियों से छा देते हैं वा इसे पहले ही से बड़े बड़े पेड़ों के नीचे लगाते हैं ।
इतिहास - प्राचीन श्रायुर्वेदीय ग्रंथों में कहवे का उल्लेख दिखाई नहीं देता है । परन्तु श्ररब तथा फ़ारस देश वासियों को इसका ज्ञान प्रति प्राचीन काल से ही है । यह विश्वास किया जाता है कि उन्हीं के द्वारा कहवा-पान की श्रादत युरोप तथा अन्य देशों में प्रसारित हुई ।
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रासायनिक संघटन - क़हवे के सूखे हुये बीजों में १ से ३ प्रतिशत तक चाय द्वारा थेईन ( Theine ) नामक पदार्थ के तद्वत् काफीन (Caffeine) नामक एक प्रकार का स्फटिकीय 'क्षारोद होता है। इसके अतिरिक्त इसमें ये पदार्थ भी पाये जाते हैं --- प्रोटीड्स ( ११ से १४ प्र० श० ), शर्करा, लिग्युमीन (१० प्र० श० ) द्राक्षौज, डेक्स्ट्रीन ( १५ प्र० श० ), काफियोटेनिक एसिड ( १ से २ प्र० श० ), वसा, उड़नशोल तैल और भस्म ( ३ से ५ प्र० श० ) जिसमें एलकलाइन कार्बोनेट्स एवं फास्फेट्स होते हैं । टिप्पणी- कैफ़ीन एक प्रधान क्षारोद है, जो चाय कहवा एवं उसी प्रकार के अन्य उत्तेजक पदार्थों जैसे कोला नट, माटी, पैराग्वे टी और ग्वाराना पेष्ट में वर्तमान होता है । यह थियोब्रोमा कोका की पत्तियों में भी विद्यमान होता है, किंतु श्रत्यल्प मात्रा में। काफ़ीन थीईन और ग्वारेनीन ये क्षारोद त्रय वस्तुतः एक ही द्रव्य हैं । पर ये तीन विभिन्न वृक्षों से प्राप्त होते हैं, श्रस्तु इनकी तीन पृथक् पृथक् संज्ञायें हैं। कैफ़ीन सन् १८२० ई० में प्रथम कहवे से और थेईन सन् १८३८ ई० में चाय से प्राप्त की गई थी। किंतु बाद को यह
क़हवा
ज्ञात हुआ कि उक्त चारद्वय की बनावट एवं गुण धर्म प्रायः समान है।
कैफ़ीन की औसत मात्रा जो उक्त पदार्थों से २.५ से ३% तक ( यद्यपि किसो किसी क़िस्म से ४% तक ) कैफ़ीन प्राप्त होती है । कहवे के फल से, जिसमें श्रंशतः स्वतन्त्र ओर कुछ मिली हुई कैफ़ीन होती हैं, यह कठिनता पूर्वक १.५% से अधिक पाई जाती है । इनके अतिरिक्त माटी ( पैराग्वे टी ) में १ से २०, ग्वाराना पेष्ट में ३ से ४% और कोला नट में लगभग ३% तक कैफ़ीन पाई जाती है। परंतु इनमें चाय ही एक ऐसा पदार्थ है जिससे श्रौद्योगिक दृष्टि से कैफ़ीन की लगभग कुत्तमात्रा प्राप्त होती है । यद्यपि 'कैफीन ' रहित काफी के निर्माण क्रम में भी कैफ़ोन की प्राप्त होती है श्रोर युरिया एवं उसी प्रकार के अन्य पदार्थों से भी संयोगात्मक विधि से (Synthetically ) यह प्रस्तुत की गई है, तथापि मितव्ययता काध्यान रखते हुये व्यापारिक लाभ दृष्टि से इसकी प्राप्ति नहीं हुई "टाइमीथल ज़ैन्थीन" काफ़ीन की रासायनिक संज्ञा है । कोकोबटर के बीजों से जो क्षारोद (Alkaloid ) प्राप्त होता है और जिसे 'थियोब्रोमीन' कहते हैं. उसकी रासायनिक संज्ञा 'डाइमीथल जैन्थीन ' । उक्त क्षारोदद्वय अर्थात् arफ़ोन श्रोर थियोब्रोमीन रासायनतः या कृत्रिम रूपसे जैन्थीन (Xanthine ) से निर्मित किये जा सकते हैं । वि० दे० "चाय" ।
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औषधार्थ व्यवहार - फल तथा बीज । एलोपैथी अर्थात् डाक्टरी चिकित्सा में इसका सत कैफ़ीन काम में श्राती है 1 औषधनिर्माण -- फाट |
काफीना Caffeina कह बीन रासायनिक सूत्र
(C8H10 N1 O2 Hg 0. ) फिशल Official वा अधिकृत पर्या० - अंतगीन, म्लेच्छफलीन (सं० ) । तंद्राहर सत, कहवीन -हिं० । शाईन ( जौहर चाय ), जौहर ग्वाराना, जौहर क़हवा (फ्रा० ) कहवीन, जौहर बुन्न ( श्रु० ) । काफ़ीना (कैफीना )