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________________ २३६६ कहरुवा एक बार में पी जायें। संदेह रहित निश्चित प्रभावोत्पादनों के सभी अन्य कृमिघ्न औषधियों की भाँति इसे खाली पेट सेवन करें और इसे सेवन करने के तुरत बाद मृदुसामक औषध देवें । इससे कृमि मृत और प्रायः खंड खंड होकर निर्गत होते हैं। इसका कोसोटॅॉकनीन सामक प्रभावकारी सत्व प्रवल विष ( Protoplasmic poison) है। कोस्सूचूर्ण को अर्द्ध पाइंट उबलते हुये पानी में पंद्रह मिनिट तक क्रेदित करके बिना छावे नीहार मुँह रोगी को पिलायें। इसके तीन-चार घंटे बाद या दूसरे दिन हलका विरेचन देखें। भेषज सेवन से पूर्व यदि रोगी मलत्याग कर चुका हो, तो और उत्तम हो, भेषज सेवनोत्तर जब तक कृमि निर्गत न होजाय, रोगी को उपवास करावे ।। यदि भोजन सेवन करने के उपरांत रोगी का जी मिचलाने लगे तो उसे किंचित् लेमनेड (मीठा | पानी) पिलावें। तीनों प्रकार के अध्नाकार कृमि (Tape worm ) के लिये कस्सू सर्वोत्कृष्ट कृमिघ्न औषध है । इसके उपयोग से उन कृमि शीघ्र नष्ट होजाते हैं। कह:-[१०] ताज़ा दुहा हुश्रा दूध । कहत-संज्ञा पुं० [अ० कहत] (१) दुर्भिक्ष अकाल । (२) पौधा । कहन:-[अ. काहन का बहु.] कहन्दरस, कहन्दरूस-[ यू०] चिलगोज़ा। कहबङ्ग-[40] वनबण्डा । कहम्-[१०] भूख की कमी । आहार की ओर रुचि की न्यूनता। कहरबा-दे. "कहरुवा"। कहरुबा-संज्ञा पुं० [फा०] (१) एक प्रसिद्ध यूनानी प्रोषधि । दे. "कहरुवा" ।(२) सफ़ेद डामर । Vateria India, Linn. कहरुबा शमई-संज्ञा पु. [फा०] कहरुवा भेद । कहरवा शमई । दे० "कहरुवा"। कहरुवा-संज्ञा पुं॰ [फा० कहरुबा ] एक प्रकार का गोंद स्वच्छ अत्यन्त चमकदार और रंग में पीला होता है । इसे कपड़े आदि पर रगड़कर यदि घास या तिनके के पास रखें तो उसे यह चुम्बक की तरह पकड़ लेता है । उक्न भौतिकी आकर्षण शकि के कारण ही विद्यच्छक्ति को "कुवत कहबाइया" कहा जाता है। यह प्रायः बरमा की खानों तथा कतिपय अन्य खानों से भी निकलता है। आधुनिक रसायनशास्त्र के अनुसार इसमें कार्बन ७८.६४, उदजन. १.५३ और अोषजन १०.५३ पाया जाताहै। रूमी और तिब्बती भेद से यह दो प्रकार का होता है । इन दोनों में अपेक्षाकृत रूमी उत्तम होता है। उत्तम कहरुबा की पहिचान यह है कि वह कड़ा, स्वच्छ-उज्ज्वल और स्वर्ण-पीत वर्ण का हो और देर में पिघले यदि उसे हाथ से रगड़े और वह गरम हो जाय तो उससे नीबू के रस को सी सुगन्ध श्रावे और घास के तिनके, रेशम और रुई को उठावे । चीन देश में इनको पिघला कर माला की गुड़ियां, मुंह नाल इत्यादि वस्तुएँ बनाते हैं । इसकी बारनिश भी बनती है। पय्याय-कहरुबा, कहरुबा शमई, काहरुबाफा०,हिं० । कपूर-द० । कर्तुलबहर, मिस्बाहुरूम इन्कितरियून, समगुल बहर-१० । कपूरमणिता.। कपूर-यूत-ते.। पायिङ, परें बर। Succinum or amber.-ले। टिप्पणी-कपूर की दक्खिनी संज्ञा 'कापूर' है न कि कपूर। परन्तु उक्त संज्ञा द्वय के लगभग समानोच्चारण के कारण, लोग प्रायः भूल से शब्दप्रयोग की बरीकी न समझने से उनका परस्पर एक दूसरे के लिये व्यवहार कर देते हैं। रियाजुल अदविया में इसकी हिन्दी संज्ञा 'कपूर' लिखी है। - वक्तव्य एनसाइक्लोपीडिया के अनुसार कहरुबा एक कड़ी, प्राभा-प्रभायुक्त स्वच्छ वस्तु है जो निर्गंध और बेस्वाद होती है। प्राचार्य फिलिप कहते हैं कि शिया के समीपवर्ती किसी खान से एक लकड़ी निकलती है उसमें कहरुबा होता है। शेख बू अली सेना श्रादि ने लिखा है कि यह एक वृक्ष का गोंद है । यह वृक्ष बहुत उच्च होता है और इसे 'हौज' वा 'हौर' कहते हैं, इसकी लकड़ी
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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