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कस्तूरीमोदक
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कस्तूर्यादि स्तम्भन हिरन मुश्की, कस्तूरिया हिरन, -उ०। मस्क योग-लोहभस्म , भा०, गंधक २ भा०,* डियर Musk deer -अं०। माँस्कस मॉस्कि पारद ३ भा०, और कस्तूरी ४ भा०, पहले कस्तूरी फेरस Moschus Moschiferus-ले। को छोड़कर शेष औषधियों को एक साथ भली (Class-Buminatia)ला; लव (तिब्बत) भाँति घोटे, फिर इसमें पीपर के काढ़े की भावना रौस -( काश्मीर)। वेना (कुनावर)। पेशौरी देकर अच्छी तरह घोट लें और एक गोला बना. -मरा०।
कर सुखा लें । पुनः इस गोले को वालुकायंत्र में गुणधर्म तथा उपयोग
रखकर तीन दिन मंदाग्नि से पाक करें। जब आयुर्वेदीय मतानुसार
स्वयंशीतल हो जाय तो गोले को निकाल कर इसके मांसमें भी मुश्क की सी बड़ी मस्त गंध उसमें कस्तूरी मिला अच्छी तरह मईन करें । पाती है, कि यह खाया नहीं जाता, जहाँगीर ने मात्रा-३ रत्ती। अग्निबल के अनुसार १६ अपने सजक में लिखा है कि मैंने कस्तूरी मृग का पीपल के चूर्ण और शहद के साथ प्रत्येक रोग में मांस पकवाया यह अत्यन्त कुस्वादु था, किसी देवें। इसके सेवन करने वाले के लिये लवण भी वन्य चातुष्पद जीवका मांस ऐसा बदमज़ा नहीं त्याज्य है। पाया। नाना ताज़ा निकला हुमा सुगंधित नहींथा। गुण-यह वृद्धतानाशक, अत्यंत वृष्य और चंदरोज़ रहकर और सूखकर खुशबू देने लगा। वाजीकरणहै। इसके सेवन से सुधा की वृद्धि होती मादा के नाना नहीं होता।
है। यह स्त्रियों को वश में करनेवाला है। (ख० अ० ६ भ० पृ० २८३) कस्तूरील्लिका-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री०] लताकस्तूरी । इसका मांस मधुर, लघु, श्राध्मान जनक, क्षुधा | मुश्कदाना । भा०। जनक और बहुत गरम है । मादा का मांस शीतल कस्तूरी हरिण-संज्ञा पु० [सं० पु.] कस्तूरिया है और ज्वर, कास, रक्रविकार तथा श्वासकृच्छ्रता मृग । पाहये मुश्की । मृगनाभि हरिण । निवारक है। (तालोन शरीफ़ो)
वैःनिघः। कस्तूरिया हिरन का मांस मधुर, हलका और कस्तूरून क़ स्कस-यु.] कुतु म । कड़ । बरै। प्राध्मानकारक है तथा भूख बढ़ाता है । कस्तूरिया
| कस्तूर्यादि चूर्ण-संज्ञा पुं॰ [सं० क्रो०] एक प्रायुहिरन की मादा का मांस शीतल है तथा कास
र्वेदीय चूर्णौषधि । एवं रक्तविकार को प्रशमित करता है।
(ख०५०)
__ योगादि-कस्तूरी, अम्बर, स्वर्णपत्र, मोती, कस्तूरीमोदक-संज्ञा पुं० [सं० पु.] एक प्रकार रौप्यदल (बर्क चाँदी) प्रवाल; इन्हें समान
का आयुर्वेदीय मोदक जिसका पाठ रसेन्द्रसार भाग लेकर एक उत्तम खरल में जो घिसनेवाला संग्रह के प्रमेहाधिकार में पाया है। योग इस
न हो, उसमें डालकर बारीक चूर्ण बनाकर इसमें प्रकार है-कस्तुरी, प्रियंगु, कटेरी, त्रिफला, दोनों
सर्वतुल्य मिश्री मिलाकर खाने से तत्काल समस्त जीरा, पका केला, खजूर, काला तिल (कृष्ण
प्रमेहों को नष्ट करता है। और १०० वर्ष की तीनक), तालमखाना के बीज इनको बराबर २ अवस्था प्राप्त होती है। इसको सेवन करने वाले १-1 मा० लेकर चूर्ण करें, जितना यह चूर्ण हो, प्राणी अश्व तुल्य स्त्री रमण में समर्थ होता है। उससे दूनी चीनी लेवें, पुनः जितना यह सब चूर्ण
इसकी मात्रा वयोवल और प्रकृतिके अनुकूल १-४ ठहरे, उससे चौगुना सम्मिलित आँवले का रस मासे तक है। दूध और पेठे का रस मिलाकर मंद-मंद अग्नि से कस्तूर्यादि स्तम्भन-संज्ञा पुं॰ [सं०] एक स्तम्भनौपाक प्रस्तुत करें। इसकी मात्रा १० माशे की है। षधि विशेष ।
(र० सा० सं०) योगादि-कस्तूरी । भा०, कश्मीरी केशर २ कस्तूरी रख-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] एक आयुर्वेदीय भा०, जायफल : भा०, लौंग १ भा०, अफीम ३ रसौषधि ।
भा०, भांग ७ भा०। इन सबका बारीक चूर्ण करके