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________________ कसेरू २३६० - के स्तनों में दूध उत्पन्न करनेवाला और नेत्र रोगों को दूर करनेवाला है। क्रौञ्चादन कसेरुकम् । * गुरुविष्टम्भि शीत. लम्। कसेरू को परिचयज्ञापिका संज्ञायें--"क्षुद्रमुस्त" "शूकरेष्टः"। गुणप्रकाशिका संज्ञा"गन्धकन्दकः"। - मुस्तादि वर्ग (N. 0. Cyperacece ) उत्पत्ति स्थान-कसेरू सिंगापुर का अच्छा होता है । यह भारतवर्ष के प्रायः सभी गरम प्रदेशों और चीन देश में होता है । चिचोड़ पूर्वीय भारतवर्ष में अधिक होता है। वृत्तगुण्ड कोंकण में बाहुल्यलता के साथ पाया जाता है, विशेषतः सलसत्ती (ralsette) में। __ औषधार्थ व्यवहार-कन्द । औषधि निर्माण-कसेरुकादि सर्पि, कसेर्वादि लेप आदि। . गुणधर्म तथा प्रयोगआयुर्वेदीय मतानुसार-कसेरूतृण वा गुण्ड गुण्डास्तु मधुराःशीताः कफपित्तातिसारहाः । दाह रक्तहरास्तेषां मध्येस्थूलतरोऽधिकः॥ (रा०नि० ८ व०) गुण्डातृण अर्थात् कसेरू का पौधा मधुर और शीतल है तथा कफ, पित्त, अतिसार, दाह एवं रुधिर इनका निवारण करता है। उनमें स्थल गुडातृण गुणों में ष्ट है। कसेरू वा गुण्ड कन्दकसेरुकः कषायोऽल्पमधुरोऽति खरस्तथा। रक्तपित्त प्रशमन: शीतदाहः श्रमापहाः॥ (रा०नि०) कसेरू-कसेला, थोड़ा मीठा एवं अत्यन्त खर है तथा रक्क पित्त प्रशामक, शीतल और दाह एवं श्रमनाशक है। कसेरुकद्वयं शीतं मधुरं तुवरं गुरु। पित्तशोणित दाहनं नयनामय नाशनम् ।। ग्राहिशुक्रानिल श्लेष्मारुचिस्तन्यकरं स्मृतम् । (भा०) दोनों प्रकारका कसेरू-शीतल, मधुर, कसेला भारी, रक्तपित्तप्रशामक, दाह निवारक, ग्राही, शुक्र जनक, वातजनक, कफकारक, रुचिजनक तथा स्त्री | (राज.) कसेरू-भारी, शीतल और विष्टम्भकारक है। पुष्पश्चास्य कामलाहरं पित्तनाशकरश्च । (वै० निघः) कसेरू का फूल-कामला और पित्त का नाश करनेवाला है। कसूरःस्यात् पीतरसो गोलावृष्यः कशेरुकः । (द्रब्याभि०) कसेरू-पीतरस, गौल्य और वीर्यवर्द्धक है। कसेरू के वैद्यकीय व्यवहार चरक-विसर्प रोग में कसेरू-कसेरू को बारीक पीसकर गाय का घी मिलाकर विसर्प पर लेप करें । यथा "सघृता च कसेरुका" । (चि० ११ १०) सुश्रुत-रक्राभिष्यंद में कसेरू-कसेरू और मुलेठीके चूर्ण की पोटली बनाकर आकाश के पानी में भिगोकर आँख में फेरने से रकाभिष्यंद आराम होता है । यथा-- "कसेरु मधुकाभ्यां वा चूर्णमम्वर संवृतम् । न्यस्तमपस्वन्तरीक्षासु हितमाश्च्योतनं भवेत् । (उ० १२ १०) वक्तव्य--चरक और सुधुत कसेरू को गुरु विष्टभि और शीतल लिखते हैं (चरक सू० २७ अ०, सुश्रुत सू० ४६ अ.)। यूनानी मतानुसार प्रकृति-शीतल और रूक्ष (मतांतर से मुरक्किबुल कवा परस्परविरोधी गुण धर्म युक्र): द्वितीय कक्षा में सर्द व तर | इसमें किंचित् उमा, संग्राहि एवं अगद प्रभाव भी वर्तमान होते हैं। स्वाद-विस्वाद वा फीका किंचिन् मधुर । हानिकर्ता-पाही, गुरु, मलावष्टंभकारक और दीर्घपाकी है तथा वादी एवं कफ और वातकारक है। प्रतिनिधि-कॅवलगडा ।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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