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________________ कसीस २३५७ 'कसीसादि घृत - डालते या पकाते हैं, तब वे घुल जाते हैं। किंतु (२) उस बहुते हुए पानी में जम जाने से प्राप्त लाल कसांस नहीं घुलता है। ये सभी भेद प्रायः होता है जो खानों के समीप गुफाओं में एकत्रित गुणधर्म में समान होते हैं । परंतु द्रवत्व और हो जाता है। इसे ज़ाज जामिद कहते हैं । (३) सांद्रत्व गुण में ये असमान होते हैं । इनमें सर्वा- जाज सज (होरा कसोस) मृत्तिका में मिली धिक सांद्र लाल कसीस होता है। इसलिये यह हुई होती है । इसे पानी में मिलाकर कथित कर जल में श्रविलेय होता है। सबसे अधिक सूक्ष्म वा साफ़ करते हैं । जब जम जाती है, तब नर्द के द्रवणशील सफ़ेद और हरा कसोस है और पीत मोहरे की प्राकृति के टुकड़े काटकर काम में लाते कासोस इनमें मध्यम है। यह अखिल कासोस हैं। इसे ज़ाज माबूख (क्वथित कसीस) कहते भेदों से समशीतोष्ण है। किसो किसी के मत से हैं । मज़ान के अनुसार ये तीनों ज़ाज सब्ज यह सर्वापता बलवत्ता है। जलाने से ज़ाज की (हीरा कसोस ) के भेद हैं। जौहरदार फौलाद तीव्रता एवं रूक्षता घट जाती है । इसी कारण को साफ करने के उपरांत कसोस से जौहर दग्ध जाज अदग्ध की अपेक्षा सभी प्रकार समग्र गुणों में उत्कृष्ट होती है। क्योंकि मारण करने से पा-काशीशं काशीषं, काशीसं कासीसं, यह बहुत सूक्ष्म हो जाती है। यह विलक्षण बात सं०। कसांस, कौशीरा-हिं० । जाज-१०। .. है कि जलाने से इसकी तीव्रता बढ़ती नहीं है जाक-फ़ा। जैसा कि प्रायः और पदार्थों में होता है कि जलाने विशेष विवरण के लिये देखो "लोहा" वा से उनकी तीक्ष्णता अधिकाधिक हो जाती है। "कासोस"। पर यदि कसोस को जलाकर धो डालें, तो वह __ संज्ञा पुं० [अ० ] तोदरी । म. श्र। अत्युत्तम एवं प्रक्षोभक हो जाय और उसकी | कसीस-[अ० ] कँपकपी । लरज़ा । Riyor राइगर तीक्ष्णता जाती रहे । जला हुमा कसीस सूक्ष्म हो " जाता है। उसकी शक्ति घट जाती है। इसके (अं०)। विरुद्ध अन्य लवण जलाने से वलिष्ट हो जाते हैं। सास, कसास:-[१०] (१) एक पौधा जो कमात जाज सफ़ेद को कलक़दीस और पीत को कलक (खुमी ) की जड़ में उगता है । (२) तोदरी । तार और ज़ाज सब्ज़ वा हीरा कसीस को कलकंद म० अ०। एवं कलवंत कहते हैं। शीराज़ी में इसे ज़ाज कसीसक-संज्ञा पुं॰ [स० पु.] केसर। (२) स्याह कहते हैं और लाल को सूरी | सफ़ेद कसीस | हीरा कसीस। कभी पीला हो जाता है। शेख ने भी सफ़ेद को | कसीस तेल--संज्ञा पु . [सं. क्री० ] कसीस, कलिकलकदीस लिखा है ।पर बहुधा इसे ज़ाज सुर्ख- हारी, कुठ, सोंठ, पीपर, सेंधानमक, मैनशिल, रक्त कासोस लिखते हैं। क्योंकि रक्त कासास भी कनेर की जड़, वायविडंग, चित्रक मूल, अडूसा, श्वेत कासीस का ही अन्यतम भेद है। अतएव दन्तीमूल, कड़वो तराई के बीज, हेमाह्वा (चूक), वजनदीस शब्द का जिपका प्रयोग सक्द कसीस हरताल इन्हें एक एक कर्ष लेकर कल्क बनाएँ, के लिये होता है, लाल कसोस के अर्थ में ग्रहण पुनः १ प्रस्थ तेल में से हुँड दूध २ पल, मदार करने में कोई हानि नहीं है । इब्नज हर के कथना- का दूध २ पल व तेल का चौगुना गोमूत्र डाल. नुसार चिरकाल के उपरांत कलकंद और कलकतार | का यथाविधि तेज सिद्ध करें। गुण-इसके कसीस बन जाते हैं । ज़ाज वा कसोस का निर्माण | लगाने से बवासोर के मस्से गिर के नष्ट हो जाते .तीन प्रकार से होता है--(१) सूक्ष्म द्रव खानों | हैं और क्षार कम का सा कष्ट भी नहीं होता । में स्वयं टपककर जम जाते हैं। इसको टपका (शा० ध. सं.) हुआ कसीस ( ज़ाज मुक़त्तर ) कहते हैं। कसीसादि घृत--संज्ञा पु. [सं० की. ] कसीस, इसकी परीक्षा यह है कि फौलाद पर इसे मर्दन दोनों हल्दी नागर मोथा, हरताल, मैनशिल, करने से उसका रंग तांबे का सा हो जाता है।। कबोला, गधक, विडं।, गूगल, माम, मिर्च,
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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