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कसरीवी
२०५६
कसाबक
* दाउद अंताकी के तजकिरा में लिखा है कि यह पत्ती का जो ताज़ी निकली हो, लेप करना द्वितीय कक्षा के प्रथमांश में उष्ण और तृतीय चाहिये । इसकी जड़ की राख करके उपयोग करने कक्षा के अंतिमांश में रूक्ष है।
से संपूर्ण अंगों से रक्तस्राव का अवरोध होता है। हानिकर्ता-शिरःशूल और सुबात की व्याधि इससे कंठमाला तथा खाज का भी नाश होता है। उत्पन्न करता है।
यह स्मरण रखना चाहिये कि यह घास रदियुल दपन-गुलकंद अस्ली और फलाफली उचित कैफियत है । इसका खाना कल्याण जनक नहीं । मात्रा में।
इसके अधिक खाने का परिमाण साढ़े सतरह माशे प्रतिनिधि-एक किस्म दूसरी किस्म को प्रति- है। इतनी मात्रा में खाने से हानि घटित होती निधि है। खून रोकने के लिये जलाया हुआ है । तजकिरे में है कि इतनी मात्रा से मनुष्य मर कागज।
जाता है। यदि कदाचित् किसी समय कोई इसे मात्रा-३॥ माशे तक।
खाले, सो उसका उपाय यह है कि वह वमन प्रधान कम-वेदनास्थापक, शोथ विलायक, करे, कस्तूरी सूघे, फलाफली भक्षण करे और निद्राजनक और रक्तावरोधक ।
स्नानागार में प्रवेश करे। नोट-फलाफली एक योगिक माजून का नाम | कसरेकन-[ नेपा० ] कठूमर । डुमुर । है जिसमें फ़िलफ्रिल स्याह ( काली मिर्च ), फ्रिल
कसरु-[ नेपा० ] बारचर। फ्रिल सफ़ेद ( श्वेत मरिच ) और दार फ़िलफ्रिज (पिप्पली) ण्ड़ते हैं।
कसकनामर-[ कना० ] कुचला । कुपीलु ।
कसरि-[ वै० पु.] एक प्रकार का साँप । गुणधर्म तथा प्रयोग यह घास दूषित. वाष्पों को मस्तिष्क से नीचे
(अथ०१०।१५) उतारती है और नींद लाती है। परन्तु अधिक | कसणील-संज्ञा पुं॰ [सं० वी०] एक प्रकार का सूंघने से यह सिर में बोझ पैदा करती है और
| सर्प । अथ सू० ४ाश का० १० । नींद लाती है । कभी इसके बीज संघने से कठिन | कसल-[१०] आलस्य । सुस्ती । काहिली । शिरःशूल उत्पन्न होता है । इसके महीन किस्म के कसवार-संज्ञा पुं॰ [ देश० ] एक प्रकार की ईख । बीजों को १०॥ माशे तक शराब में मिलाकर पीने
कसा-[?] शंखपुष्पी। से उदरावष्टंभ होता है; श्राता हुभा खून बंद हो |
कसाऽ-[१०] (१) तज। सलीना । (२) जाता है और पेशाब रुक कर आने लगता है।
. दारचीनी। मोटी क्रिस्म के बीज भक्षण करने से अधिक नींद कसाउ-[को०] काँस। प्राती है। यहाँ तक कि १७॥माशे तक खा लेने | कसाइ- गु०] Colx Lachrymay Janm. से निद्रा रोग उत्पन्न हो जाता है । इसके लेप से |
गवेधुक । गर्गरो धान । संखरु | कसि । सूजन उतरती है; दर्द पाराम होता है; कुनिद्वा, साउन्हिमार-दे० "कि.स्स.ाउल हिमार"। मालीखोलिया और जलंधर को गुणकारी है। कसातूनस, कमातूस- यू.] कड़ । बरें । कुसुम का
बीज। अस्ल की उस जाति को जिसकी पत्ती पतली हो, यदि उसे बिछा कर उस पर ऐसे लोगों को क़सादा-[ यू०] सोहागा । टंकण । सुलाएँ जो बहुत स्थूल हो या जिन्हें जलंधर रोग | कसा तीर-संज्ञा पुं० [अ०] मूत्रप्रवर्तनी शलाका । हुआ हो, तो उनके लिये यह लाभकारी है। मोटी पेशाब खोलने की सलाई । कासातीर । कानातीर पत्तीवाली किस्म का फर्श उन लोगों के लिये गुण- केथीटर । Catheter (अं०)। कारी है जिनकी प्रकृति में रौक्ष्य का प्रावल्य हो । क्रसादेस्मा-[यू०] चिरायता। परन्तु रुतीला ( मकड़ी की बड़ी जाति) के काटे | कसाबः-[१०] खराब छुहारा । पर, इस घास की जड़ के पास की उस कोमल कसाबक-[अ० खंजन । ममोला । सकरागन ।
७५ फा.