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hiबुजरीरहे हिंदी
कसबुज्जरीरहे हिंदी - [ श्र० ] किरात तिन । भूनिम्ब । चिरायता । ( Androgratlis _pnidulta)
कसबुज्जेब-[ अ० ] ( १ ) एक प्रकार का छोहारा | (२) एक प्रकार की घास जिसमें थोड़ी सी मिठास होती है । ( ३ ) किसी किसी के मत से एक प्रकार के काँस को जड़ है, जो नदी के समीप उत्पन्न होता है ।
कमबुस्कर
कसबुस्सुकर - [अ०] ] गन्ना । ईख । कुसुबेसकर
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कसब वा - [ श्र० ] चिरायता ।
कुसम -संज्ञा पु ं० [अ० क्रस म] [स्त्री० काम ] नर लकड़बग्घा । नर चर्ख ।
संज्ञा स्त्री० [ ० ] शपथ । सौगंध ।
कसमल - संज्ञा पुं० [सं० कश्मल । देश० शिमला ] दारु हलदी ।
] नेवला | रासू |
कसयः - [ कसया - [ रू० यू० ] Cassia तज ।
कसयूमालस - [ रू०] हशीशतुल् जुजाज । ग्याह श्राबगीनः ।
कसयूसियूस - [ रू० यू०] तज । सलीना । श्रु० क़सूर ] ( १ ) कमी ।
कसर संज्ञा स्त्री०
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न्यूनता | कोताही | त्रुटि । दे० “क़सूर”। (२) नुस | दोष | विकार ।
संज्ञा पु ं० [देश०] कुसुम वा बर्रे का पौधा । [ फ्रा०, यू० ] जुफ़न ।
[ सिरि० ] सफ़ेद सोसन ।
कसूर -[ ० ] ( १ ) गरदन वा गरदन की जड़ । खोपड़ी के ठहरने की जगह । ( २ ) दवा इत्यादि का फोक जो उसे छानने के उपरांत बच रहे । ( ३ वृक्ष की जड़ ( मुख्यतः खजूर की जड़ ) । कसुरः--[ श्रु० ] ( १ ) गरदन की जड़ । ग्रीवामूल | (२) गरदन की जड़ का दर्द ।
कसर गाजरूनी - [ फ्रा० ] ख ब शामी । दे०
“ख़ब” ।
कसरानी
संज्ञा स्त्री० [अ० कलरत ] अधिकता में बहुतायत । ज्यादती । वि० दे० "कस रत" । कसरवा-संज्ञा पुं० [देश० ] "सालपान" नाम का क्षुप । कसराक़ - [ ? ] घोड़ी । कसरानी-संज्ञा स्त्री० कसेरा ? ] घास जो जलीय भूमि में प्रायः नदी
के किनारे उगती है । इसके पत्तों से बुनी जाती है। हिंदुस्तान में भूमि में यह
आदि छाते हैं ।
खड़ी होती है। 'मी' कहते हैं । यह
इसको
के समीप तर जमीन खुरखुरी होती है ।
यह दो प्रकार की होती है, एक नर, दूसरी मादा । नर का बीज मादा के बीज से बड़ा होता है। यह कृष्ण वर्ण का और गोल होता है । नर की पत्ती मादा की पत्ती से मोटी और खुरदरी होती है । ये पत्ते लंबे लंबे और बारीक होते हैं और उनमें डालियाँ नहीं होतीं । श्रराक़ में इससे रस्सियाँ और घाटा छानने की चलनियाँ भी बनाते हैं। हकीम दीसक़रीदूस ने लिखा है कि इसकी तीन जातियाँ हैं । एक जाति में काले बीज चाते हैं, दूसरी जाति में नहीं । इन दोनों को 'सजूनस' कहते हैं । तीसरी जाति को 'मंजूनूस' कहते हैं । I इस जाति में भी बीज होता है। पहली दोनों जातियों से इसकी पत्तियाँ मोटी अधिक और दोनों जातियों से बलशालिनी होती हैं। किसी किसी के मतानुसार इसकी एक जाति की पत्तियाँ महीन और कड़ी होती हैं और दूसरी जाति की कोमल और मोटी ।
कसरबुवा --[?] रोग़न हिना । मेंहदी का तेल । कसरत - संज्ञा स्त्री० [ श्रु० ] [वि० कसरती ] व्यायाम | मेहनत ।
प्रकृष्ट
एक प्रकार की
और नालाब
बोरिया और
इससे टट्टियाँ मीलों तक
यूनानी में 'इज़ख़िर
घास पानी में और जल उगती है। इसकी पत्ती
पर्या०[० - अस्ल - श्र० । दूख-फ्रा० । समखमिनः । कौलान- हिं० ।
नोट
-यह बूटी श्रायुर्वेदोक गुन्द्रः या गोंदपटेरा ज्ञात होती है।.
- लेखक प्रकृति — इसकी सभी क़िस्में परस्पर विरोधी गुणधर्म युक्र हैं और उनमें शीतल पार्थिवांश का प्रावल्य होता है और उष्ण जलीयांश प्रल्प ।