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________________ कलौंजी २९२५ का कासनी या खुरफे के पानी के साथ, (२) अकेला पड़ताहै । यह आर्त्तव, स्तन्य और मूत्र का प्रवर्तन कासनी, (३) सिरके में भिगोकर उपयोगित करती है। इसके सिवा यह प्रसव कालीन रक्तस्रति करना, और (४) खीरे के बीज । (निनासका खून) एवं तजन्य वेदनाका निवारण प्रतिनिधि जैतून का गोंद, तुरुम रशाद, करती है । यह सर्द खाँसी, उरो वेदना, जलोदर तिगुना अनीसून तैल में प्राधे सोये के बीज, पार- और वायु जन्य उदरशूल (रियाही कुलंज) को सीक यमानी के बीजों को भी इसकी प्रतिनिधि लाभकारी है। यह उदरज कृमियों को निःसरित लिखा है। करती है। इसके लेप से सूजन उतरती है। धी मात्रा-३॥ माशे से अधिक हानिकारक के साथ कपोलों को अरुण वर्ण और चेहरेको साफ होती है। कहते हैं कि ७ माशे तक खाए, अधिक करती है ।यदि रतीला या बावले कुत्ते ने काट खाना उचित नहीं । किसी-किसी ने ४॥ माशे से खाया हो, तो ४॥ मा० से ७ मा० बल्कि १०॥ है माशे, बल्कि १०॥ माशे तक शीत प्रकृति को मा० तक पानी के साथ खिलाने से उपकार और १॥ मा० से ३ मा० तक उष्ण प्रकृति को होता है। सिकंजबीन के साथ जीर्ण कफ ज्वर और बतलाया है। इससे अधिक सेवन करने से खनाक चातुर्थिक ज्वर के लिये उपकारी है। यदि सात पैदा होने का भय है। दाने कलौंजी स्त्री के दूध में पीसकर कामला रोगी गुण, धर्म, प्रयोग-कलोंजी तीक्ष्णोष्ण की नाक में, जिसकी आँखें पीली पड़ गई हों, (हाइ) और परिष्कारक (जाली) है। यह टपकायें तो बहुत उपकार हो। यदि कै में पीव वायु को अनुलोम करती है और अपनी कांति- पाती हो, जी मिचलाता हो, तिल्ली बढ़ी हुई हो, कारिणी शक्ति (कुब्बत जिला) के कारण उलटे तो इससे उपकार होता है। यदि साँस लेने में मस्सों (सालील मनकूसा) का छेदन करती है। कष्ट हो यहां तक कि रोगी शय्या पर पहलू न यह व्यंग एवं श्वित्रका निवारण करती है, क्योंकि टेक सके और जब तक सीधा न बैठे या खड़ा इसमें उष्मा द्वारा सम्यक् परिपक्कता को प्राप्त उस न हो और गरदन सीधी न रखे, साँस न ले सके, सूचमतत्वांश के कारण, एक प्रकार की कांति- तो उक्न अवस्था में कलौंजी से बहुत उपकार होता कारिणी शक्ति विद्यमान होती है । इसे बाहर उदर | है । कलौंजी को जलाकर मोम और तेल मिलाकर के उपर लगाने से यह सूत्र कृमियों और कह दाने | सिर के गंज पर मलना गुणकारी है। दीर्घकाल को नष्ट करती है, क्योंकि इसमें तारल्यकारिणी तक ऐसा करने से बाल उग आते हैं। केवल (लतीफ्रा) और अवरोधोद्धाटिनी शक्ति के सहित सिरका में मिलाकर मस्सों पर लगाने से वे कट तिक्रता होती है। इसके तिनकों को तालाब में जाते हैं। इसको पीसकर सिरके में मिलाकर पेट गलने से मछलियाँ ऊपर तैरने लगती हैं। यदि पर लगाने से कहूदाने नष्ट हो जाते हैं। इसके इसको भूनकर अलसी (क़त्ताल) के नीले कपड़े धुएँ से जहरीले कीड़े-मकोड़े भागते हैं । सिरका में पोटली बाँध- कर सूघा जाय, तो अपनी और सनोबर की लकड़ी के साथ कथित करके अवरोधोद्धाटिनी शक्रि से स्रोतों (मसफ़ात ) के उसका गंडूष करना दंतशूल को लाभकारी है। अवरोधों का उद्धाटन करती है। (नक्री०) कलौंजी पीसकर छाछ में प्रौटाकर उसे नारू पर कलौंजी वातानुलोमक, उदराध्मान नाशक और प्रलेपकरें, तीन दिनमें समस्त नारूं निकज भायेंगे, मलावरोधनाशक होती है । (ता. श०) चाहे वे टूट गये हों। कलौंजी के पेड़ के पत्ते, यह औष्ण्य एवं रौक्ष्य और कांति (जिला) डालियाँ और बीज-इनको पीसकर जननेन्द्रिय उत्पन्न करती, रतूबत वा किन्नता का शोषण करती, के क्षतों पर लगाने से वे प्रारम होते हैं। कलौंजी माहे को पकाती और उसका साम्य संपादन(मात- को पानी में पीसकर शहद मिलाकर पीने से वृक दिलुल निवाम) करती है। इसको औंटाकर पीने और वस्तिस्थ अश्मरी निकल जाती है। इसको से मृत और जीवित शिशु उदर के बाहर निकल | ___ जलाकर राख लगाने और पीने से अर्शाकर गिर ७५ फा०
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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