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________________ कलौंजी तेल के विचार से यह दो प्रकार का होता है । एक का तेल काला, उड़नशील और सुगंधित होता दूसरे का तेल साफ़ रेंडी के तेल का सा और गाढ़ा होता है । सर्वोत्तम कलौंजी वह है, जिसके दाने नये, भारी मोटे तेज़ और चरपरे हों। इसमें सात साल तक रहती है। पर्या०० उपकुञ्चा, उपकुञ्ची, कालिका, उपकालिका, सुषवी, कुञ्चिका, कुञ्ची, पृथ्वीका स्थूलजीरकः ( ध० नि० ), दीप्यः, उपकुञ्चिका, काली, पृथ्वी, स्थूलकणा, पृथुः, मनोज्ञा, जारणी, जीर्णा, तरुणः, स्थूलजीरकः, सुपवी, कारवी, पृथ्वीका ( रा० नि० ); कालिका, सुविषा, कुञ्ची, करकृष्णा, वाष्पिका (केय० दे० ), कालाजाजी, सुषवी, कालिका, उपकालिका, पृथ्वीका, कारमी, पृथ्वी, पृथु, कृष्णोपकुञ्चिका, उपकुञ्ची, कुञ्चिका, कुञ्ची, बृहज्जीरक ( भा० ), उपकुञ्चिः (२०) सुषवी, कारवी, पृथ्वी, पृथुः, काला, उपकुञ्चिका ( श्र० ) कुचिक (ज), पति-बरा ( श० ), सुषवी, कुचिका ( ० टी०), सुषवी, पृथुका, पृथिवी, भेषजं (शब्दर० ) कृष्णा, जरणा, शाली, बहुगंधा, कृष्णजीरः, कृष्णजीरकः - सं० | कलौंजी, मँगरैला, मगरेला, मँगरैल - हिं० । कालाजीरा, कलौंजी - द० | कालाजीर, कालाजीरा, कालजीरा, मँगरल, कृष्णजीरा, मँगरैला, शा जीरा, किर्मानी जिरा, विलाती जिरा - ० । शौनीज़, हब्बुतुस्सौदा, कमूने अस्वद कमूने हिंदी, लहब्बतुसोदा, अल्शोनीज़, लशीनीज़, अल्हम्बतुल ख़िज़रा, सौदा, कबूदानू, कमूनी, हब्बे सवद् - अ० | स्याह दानः, स्याह त्रिरंज, शोनीज़, शोनूज़ - फ़ा० । (Sibthorb) क़राचोरक ऊदी-तु० । निगेला fafear Nigella Sativa, Linn., fana इंfor Nigella, Indica, D. C. - ले० । स्माल फेनेल Small Fennel, नाइगेल्ला सोड्स Nigella seeds seed flowerश्रं० । Nielle Toute epice - फ्रा० | Gremein Nigelle, Schwarzer-Kummel Melanthion - जर० | करुज् शीर्गम् करुज् जीर्गम - ता० । तल्ल -जिलकर, तल्लजीरे, तल्लजीरा कारी - ते० | करुनूं चीरकम् - मल० । करे- जीरग २३३७ कलोजी (गे), का जीरगे, करि जिरिगि, कलौंजी, विलिय जीरगे, काले जीरको, काले जिरे, मेंकरी जो दु जीरगे, करिदाडुरिगे - कना० । काल जीरे, कलौंजी जीरे - मरा० | काली जीरी, कलौंजी जीरु-गु० । कलु दुरु - ( सिंहली ) । समौ ने - बर० । कालेंजिरे तुक्मे - गंद्ना - काश० । सियाह दारु - अ० । इतिहास – संस्कृत कृष्णजीरक, उपकुञ्चिका, कालाजाजी इत्यादि धन्वन्तरीय राजनिघंटूक शब्दों के देखने से यह प्रतीत होता है, कि भारतीयों का कलौंजी विषयक ज्ञान प्राचीनतम है। कलौंजी और उसके अन्य जातीय पौधों का प्रभव स्थान भारतवर्ष है । प्रसिद्ध वनस्पति शास्त्रविद् राक्सवर्ग 1 का भी ऐसा हो मत है । ऐन्सली के मतानुसार इसका वैज्ञानिक नाम Nigella Indica है । किसी किसी ने इसका मूल प्रभव स्थान मिश्रादि अन्य देश माना है और तद्देशीय पौधे का नाम Nigella Sativa लिखा है । फार्स फहल ( Forskahl ) अपने ( Medicina Kabarina ) ग्रन्थ में लिखते हैं कि इसका श्रादि उत्पत्ति स्थान मिश्र है, जहाँ इसे हब्बुस्सौदा कहते हैं। संभव है यह अन्य देशों में भी श्रति प्राचीन काल से स्वतन्त्रतया होती रही हो, जिसकी पुष्टि उपर्युक्त वर्णन से होता है । परन्तु भारतवर्ष को इसका मूल प्रभव स्थान मानने में हमें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिये । भारतीय श्रोर विदेशीय दोनों के बीज स्वरूप श्रोर लक्षणादि में प्रायः समान होते हैं । अतएव दोनों के लिये प्रायः एक ही संज्ञा का व्यवहार होता है और N. Sativa तथा N Indica दोनों परस्पर एक दूसरे के पर्याय स्वरूप व्यवहार की जाती है । दर्डवुड के अनुसार यह ईसाई धर्म ग्रन्थोक्त ( Black Cumin ), बुकरात और दीसकूरी दूस लिखित 'मेलाथियून' और लाइनी लिखित 'गिथ' है । प्राचीन युनानी निघंटु ग्रन्थों में 'शोनीज' वा 'ह०तुस्सौदा' नाम से इसका उल्लेख मिलता है । काकपदीय वा वत्सनाभ वर्ग ( N. O. Ranunculacece. ) उत्पत्ति स्थान — भूमध्यसागर के देश भारतवर्ष के बहुत से भागों में विशेषतः बंगाल में बीज
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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