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________________ कलूदा २३२६ कलौंजी कलूदा-दे० "कलौंदा"। कलों कुलई-[ उ० ५० सू० ] छोटा मटर। कलू-[फा०] शीरमाल । कलोई बोड़ा-संज्ञा पुं॰ [ देश० ] एक प्रकार का कलूखा-[फा० ] अमरूद। ___ बड़ा साँप वा अजगर जो बंगाल में होता है। कलूगी तून-[ यू०] सनोबर । कलोडियन-संज्ञा पु. [ अं. Collodion] कलूचो-[पं०] शंगला । कदीरा । (सिमला )। [बहु० कलोडियंस Collodions ] कलोदिकलूजन-[ राजपु.] कुलंजन । __ यून । दे. "कोलोडियम्"। कलूत-[?] बाक़लाए हिंदी । कलोडियम्-संज्ञा पु. [ले. Collodium ] कलूफा-[ यू.] कह । [बहु० कलोडिक Collodia] दे. "कोलोक़लूब-[अ०.] भेड़िया । डियम्"। कलूबा. कलूवा मेख-रू.] आँवला । कलोद्भव-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] कलम शालि । कलूबासीर-[रू० ] आँवला का दूध । ___ कलमा धान । रा०नि०व० १६ । जड़हन । कलूरकिया-[यू०] चंदन । संदल । कलोर-संज्ञा स्त्री० [सं० कल्मा ] वह जवान गाय जो क़लूसून-[ यू.] पुदीना । ___ बरदाई या व्याई न हो। A heifer. कलूनूस-[ ? ] कुलूनूस । रोहूमछली । शबूत । कलौंजदाना-संज्ञा पुं॰ [हिं० कलोंजी+दाना ] मँगक़लूमूस-[यू.] रासन । कुलूमूस । रैला । कलौंजी । क़लूह-?] वृक्क । गुर्दा। कलौंजी-संज्ञा पु० [सं० कालाजाजी ] एक सुप कलूना-संज्ञा पुं० [ देश०] एक प्रकार का मोटा | जो दक्खिन भारत और नेपाल की तराई धान जो पंजाब में उत्पन्न होता है। में होता है। इसकी खेती नदी के कूलों पर कलेंजि-[बर० ] कठ करंज। होती है। दोमट वा बलुई जमीन में इसे अगहन कलेजुआ-[?] झाँपल पक्षी । पूस में बोते हैं। इसका पौधा डेढ़ दो हाथ ऊँचा कलेंदा-दे० "कलींदा"। सोंफ के पौधे से मिलता-जुलता होता है।शाखायें कलेजई-संज्ञा पुं॰ [हिं० कलेजा ] एक प्रकार का एक बालिश्त के बराबर अथवा उससे बड़ी ओर रंग। चुनौटिया रंग। पतली होती हैं । फूल सफ़ेदी लिये पीले होते हैं। कलेजा-संज्ञा पुं॰ [सं० यकृत, (विपर्याय) कृत्य, किसो किसी में नोलेपन को भी झलक होती है। कृज ] (१) हृदय । दिल । (२) जिगर । फूल झड़ जाने पर फलियाँ लगती हैं जो ढाई-तीन यकृत । कबिद। (३)छाती । वक्षःस्थल । अंगुल लम्बी होती हैं जिनमें काले काले दाने भरे कलेजी-संज्ञा स्त्री० [हिं० कलेजा ] (1) कलेजे का रहते हैं। ये दाने वा बीज तिकोने, छोटे; बाहर से - मांस । (२) दे० "करेज़ी"। गहरे भूरे वा काले रंग के और भीतर से पांडु-श्वेत कलेटा-संज्ञा पुं॰ [ देश० ] एक प्रकार को बकरी वा शुभ्र वर्ण के (गिरी) होते हैं। इनका फली जिसके ऊन से कंबल श्रादि बुने जाते हैं। से संलग्न सिरा (Umbilical end) कलेनियम्- मल० ] भंगरा । भंगरैया । अपेक्षाकृत क्षुद्र होता है । बीज के ऊपरका छिलका कलेयम् कोनप-[ मल० ] बारहसिंगा । खुरदरा ( उच्च नोच) होता है। देखने में ये कलेवर-संज्ञा पुं० [सं० को०] देह । शरीर । चोला । दानादार बारूद की तरह प्रतीत होते हैं । स्वाद में जिस्म । रा० निघ० व०१८ । ( कलेवर बदलना ये किंचित्तिक और सुगंधित होते हैं। इनमें से कायाकल्प होना । रोगके पीछे शरीर पर नई रंगत एक प्रकार की विशिष्ट नीबू को तरह की प्रिय एवं चढ़ना)। तीव्र गंध पाती है और इसी से ये मसाले के काम कलेसुर-संज्ञा पुं० दे० "कलसिरा" । में आते हैं। इन बीजों से तेल भी निकाला जाता कलै-[पं०] चूना । है, जो दवा के काम में श्राता है। यह उड़नशील कलैप्पैक किशंगु- ता०] कलिहारी । तैल ही इसका प्रभावकारी सार भाग होता है।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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