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कलूदा
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कलौंजी कलूदा-दे० "कलौंदा"।
कलों कुलई-[ उ० ५० सू० ] छोटा मटर। कलू-[फा०] शीरमाल ।
कलोई बोड़ा-संज्ञा पुं॰ [ देश० ] एक प्रकार का कलूखा-[फा० ] अमरूद।
___ बड़ा साँप वा अजगर जो बंगाल में होता है। कलूगी तून-[ यू०] सनोबर ।
कलोडियन-संज्ञा पु. [ अं. Collodion] कलूचो-[पं०] शंगला । कदीरा । (सिमला )।
[बहु० कलोडियंस Collodions ] कलोदिकलूजन-[ राजपु.] कुलंजन ।
__ यून । दे. "कोलोडियम्"। कलूत-[?] बाक़लाए हिंदी ।
कलोडियम्-संज्ञा पु. [ले. Collodium ] कलूफा-[ यू.] कह ।
[बहु० कलोडिक Collodia] दे. "कोलोक़लूब-[अ०.] भेड़िया ।
डियम्"। कलूबा. कलूवा मेख-रू.] आँवला ।
कलोद्भव-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] कलम शालि । कलूबासीर-[रू० ] आँवला का दूध ।
___ कलमा धान । रा०नि०व० १६ । जड़हन । कलूरकिया-[यू०] चंदन । संदल ।
कलोर-संज्ञा स्त्री० [सं० कल्मा ] वह जवान गाय जो क़लूसून-[ यू.] पुदीना ।
___ बरदाई या व्याई न हो। A heifer. कलूनूस-[ ? ] कुलूनूस । रोहूमछली । शबूत ।
कलौंजदाना-संज्ञा पुं॰ [हिं० कलोंजी+दाना ] मँगक़लूमूस-[यू.] रासन । कुलूमूस ।
रैला । कलौंजी । क़लूह-?] वृक्क । गुर्दा।
कलौंजी-संज्ञा पु० [सं० कालाजाजी ] एक सुप कलूना-संज्ञा पुं० [ देश०] एक प्रकार का मोटा |
जो दक्खिन भारत और नेपाल की तराई धान जो पंजाब में उत्पन्न होता है।
में होता है। इसकी खेती नदी के कूलों पर कलेंजि-[बर० ] कठ करंज।
होती है। दोमट वा बलुई जमीन में इसे अगहन कलेजुआ-[?] झाँपल पक्षी ।
पूस में बोते हैं। इसका पौधा डेढ़ दो हाथ ऊँचा कलेंदा-दे० "कलींदा"।
सोंफ के पौधे से मिलता-जुलता होता है।शाखायें कलेजई-संज्ञा पुं॰ [हिं० कलेजा ] एक प्रकार का
एक बालिश्त के बराबर अथवा उससे बड़ी ओर रंग। चुनौटिया रंग।
पतली होती हैं । फूल सफ़ेदी लिये पीले होते हैं। कलेजा-संज्ञा पुं॰ [सं० यकृत, (विपर्याय) कृत्य,
किसो किसी में नोलेपन को भी झलक होती है। कृज ] (१) हृदय । दिल । (२) जिगर ।
फूल झड़ जाने पर फलियाँ लगती हैं जो ढाई-तीन यकृत । कबिद। (३)छाती । वक्षःस्थल ।
अंगुल लम्बी होती हैं जिनमें काले काले दाने भरे कलेजी-संज्ञा स्त्री० [हिं० कलेजा ] (1) कलेजे का रहते हैं। ये दाने वा बीज तिकोने, छोटे; बाहर से - मांस । (२) दे० "करेज़ी"।
गहरे भूरे वा काले रंग के और भीतर से पांडु-श्वेत कलेटा-संज्ञा पुं॰ [ देश० ] एक प्रकार को बकरी
वा शुभ्र वर्ण के (गिरी) होते हैं। इनका फली जिसके ऊन से कंबल श्रादि बुने जाते हैं।
से संलग्न सिरा (Umbilical end) कलेनियम्- मल० ] भंगरा । भंगरैया ।
अपेक्षाकृत क्षुद्र होता है । बीज के ऊपरका छिलका कलेयम् कोनप-[ मल० ] बारहसिंगा ।
खुरदरा ( उच्च नोच) होता है। देखने में ये कलेवर-संज्ञा पुं० [सं० को०] देह । शरीर । चोला ।
दानादार बारूद की तरह प्रतीत होते हैं । स्वाद में जिस्म । रा० निघ० व०१८ । ( कलेवर बदलना
ये किंचित्तिक और सुगंधित होते हैं। इनमें से कायाकल्प होना । रोगके पीछे शरीर पर नई रंगत
एक प्रकार की विशिष्ट नीबू को तरह की प्रिय एवं चढ़ना)।
तीव्र गंध पाती है और इसी से ये मसाले के काम कलेसुर-संज्ञा पुं० दे० "कलसिरा" ।
में आते हैं। इन बीजों से तेल भी निकाला जाता कलै-[पं०] चूना ।
है, जो दवा के काम में श्राता है। यह उड़नशील कलैप्पैक किशंगु- ता०] कलिहारी ।
तैल ही इसका प्रभावकारी सार भाग होता है।